पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०५

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राम)*28-0%E0%A8-म-राम -राम -राम -राम -राम)-*-राम -राम -राम) ॐ ३०३ मच न स ८ के छत्रबन्धुः हैं बिग्र बोलाई ॐ घालै लिये सहित समुदाई की ईश्वर राखा धरम हमारा ॐ जैहसिं' हैं, समेत परिवारा एम् | रे नीच क्षत्रिय ! तूने तो परिवारसहित ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें नष्ट करना है रामो चाहा था। ईश्वर ही ने हमारा धर्म रख लिया । तू परिवार-सहित नष्ट होगा। राम * संबत मध्य नास तव होऊ ॐ जलदाता ने रहिहि कुल कोऊ ॐ के नृप सुनि स्राप बिकल अति त्रासा ॐ भै बहोरि बर गिरा अकासा । एक वर्ष के भीतर तेरा नाश हो जाय, तेरे कुल में कोई पानी देने वाला तक न रहेगा। शाप सुनकर भय के मारे राजा अत्यन्त व्याकुल हो गया । फिर मी आकाश में सुन्दर आकाशवाणी हुई। कुँ विग्रहु स्राप बिचारि न दीन्हा ॐ नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा । चकित विप्न सब सुनि नभवानी ॐ भूप गयेउ जहँ भोजन खानी हे ब्राह्मणो ! तुमने विचारकर शाप नहीं दिया। राजा ने कुछ अपराध एम) नहीं किया। आकाशवाणी सुनकर सब ब्राह्मण चकित हो गये। तब राजा वहाँ गया, जहाँ भोजन बना था। के तहँ न अंसन नहिं बिप्रं सुझारा ॐ फिरेउ राउ मन सोच अपार । सबः प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई ॐ त्रसितं. परेउ अवनी अकुलाई | वहाँ न तो भोजन था, न रसोइया ब्राह्मण ही था। राजा लौटा। उसके के मन में अपारं चिन्ता थी | उसने सब कथा ब्राह्मणों को सुनाई और भयभीत और ॐ व्याकुल होकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। - भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर। ५ किये अन्यथा होई नहिं बिप्रस्राप अति घोर ॥१७॥ हे राजन् ! यद्यपि तुम्हारा दोष नहीं, पर होनहार नहीं मिट सकता। एम) ब्राह्मण का शाप बहुत ही भयानक होता है। यह किसी प्रयत्न से भी टाले नहीं राम, ॐ टल सकता। राम) अस कहि सव महिदेव सिधाये ॐ समाचार पुरलोगन्ह पाए । सोचहिं दूषन दैवहि देहीं ॐ विरचत हँस काग किय जेही १. जायगा । २. रसोइया ।