पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०६

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कुछ | ॐ . ऐसा कहकर सब ब्राह्मण चले गये । नगर-निवासियों ने जब यह समाचार

  • पाया, तब वे चिन्ता करने और भाग्य को दोष देने लगे, जिसने हंस बनातेॐ बनाते कौआ कर दिया। राम उपरोहितहिं भवन पहुँचाई $ असुर तापसहिं खवरि जनाई। तेहि खल जहँ तहँ पत्र पठाए $ सजि सजि सेन भूप सव आए

राक्षस कालकेतु ने पुरोहित को उसके घर पहुँचाकर मुनि को खबर दी। उस दुष्ट ने जहाँ-तहाँ पत्र भेजे, जिससे (बैरी) राजा लोग सेना सजा-सजाकर दौड़े। घेरेन्हि, नगर निसान' बजाई के विविध भाँति नित होइ लाई जूझे सकल सुभट करि करनी ॐ वंधु समेत परेउ नृप धरनी उन्होंने डंका बजाकर नगर को घेर लिया। रोज़ अनेक तरह से लड़ाइयाँ राम) होने लगीं । सब योद्धा लोग वीरता दिखलाकर काम आये । राजा भी भाई-समेत ॐ धरती पर गिर पड़ा अर्थात् मारा गया ।। एम सत्यकेतु कुल कोउ नहिं वाँचा ॐ विप्र स्राप किमि होइ असाँचा रिपु जिति सब नृप नगर बसाई ॐ निज पुर गवने जय जसु पाई सत्यकेतु के कुल में कोई नहीं बचा । ब्राह्मणों का शाप मिथ्या कैसे हो रामो सकता था ? शत्रु को जीतकर, नगर को बसाकर, सब राजा लोग विजय और यश पाकर अपने-अपने नगर को चले गये ।। ६) भरद्वाज सुलु जाहि जब होइ विधाता वास । छ धूरि मेरु सम जन जसताहि ब्याल सम दास।१७५ ( याज्ञवल्क्य कहते हैं ) हे भरद्वाज ! सुनो, ब्रह्मा जब जिसके विपरीत होते हैं, तब उसे धूल सुमेरु पर्वत के समान, पिता यम के समान और रस्सी साँप के समान हो जाती है। काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा के भयेउ निसाचर सहित समाजा दस सिर ताहि वीस भुजदंडा ॐ रावन नाम वीर चरिवंडा हे मुनि ! सुनो, वही राजा समय पाकर परिवार-सहित राक्षस हुआ । उसके ॐ दस सिर और बीस भुजायें थीं। रावण उसका नाम हुआ और वह बड़ा ही शूरवीर हुआ। । १. डेको । २. मिथ्या, झूठ ।।