पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०७

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। २०४ एचटि मानस ॐ भूप अनुज अरिमर्दन नामा ॐ भयेउ सो कुम्भकरने बलधामा ॐ । सचिव जो रहा धरमरुचि जासू ॐ भयेउ विमात्र बंधु लघु तासु राम्रो राजा का छोटा भाई जो अरिमर्दन नाम का था, वही बड़ा बलवान् । कुम्भकर्ण हुआ । राजा का मन्त्री जो धर्मरुचि था, वह रावण का सौतेला छोटा भाई हुआ। नाम विभीषन जेहि जगु जाना ॐ विष्नु भगत बिंग्यान निधाना रहे जे सुत सेवक नृप केरे ॐ भये निसांचर घोर घनेरे उसका नाम विभीषण हुआ; संसार उसे जानता है। वह विष्णु का भक्त ॐ और ज्ञान-विज्ञान का भंडार था । और जो राजा के पुत्र और सेवक थे, वे सभी * बड़े भयानक राक्षस हुये। म कामरूप खेल जिनिस अनेको के कुटिल भयंकर विगत बिवेका कृपा रहित हिंसक सव पापी ॐ बरनि न जाइ बिस्व परितापी राम वे अनेक जाति के, स्वेच्छापूर्वक मनमाना रूप धारण करने वाले, दुष्ट, राम ॐ प्रपंची, भयानक, विवेक से हीन, कृपा से रहित, हिंसक, पापी और संसार भर | को दुःख देने वाले हुये । उनका वर्णन नहीं हो सकता। - उपजे जदपिपुलस्त्य कुल पावन अमल अनूप। है । तदपि महीसुर स्राप बस भए सकल अघु रूप ॥१७६॥ । यद्यपि वे पुलस्त्य ऋषि के पवित्रं, निर्मल और अंनुपम कुल में उत्पन्न हुये, ॐ तो भी ब्राह्मणों के शाप के कारण वे सब पाप के रूप ही हुये । राम) कीन्ह विविध तप तीनिहुँ भाई के परम उग्र' नहिं बरनि सो जाई ॐ गयेउ निकट तप देखि विधाता ॐ माँगहु बर प्रसन्न मैं तांता तीनों भाइयों ने अनेक प्रकार के तप किये। बड़ा कठोर तप, जिसका छ वर्णन नहीं हो सकताः। उनका तप देखकर विधाता उनके निकटं गये और एम बोले- हे तात् ! मैं प्रसन्न हूँ, वर माँगी। करि विनती पद गहि दससीसा ) वोलेउ बचन सुनहु जगदीसा हम कांहूके मरहिं न मारे ॐ बानर मनुज जाति दुई वारे * रावण ने विनय करके और पैर पकड़कर कहा--हे जगत के स्वामी ! ) १. सौतेला ! २. कठोर। ३. छोड़कर, बचाकर।।