पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०८

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5 २०५ के सुनो, बानर और मनुष्य दो जातियों को छोड़कर हम और किसी के मारे न मरे म) ( यह बर दो ) । एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा ॐ मैं ब्रह्मा मिलि तैहि बर दीन्हा पुनि प्रभु कुम्भकरन पहिं गयेउ ॐ तेहि विलोकि मन विसमय भयेउ | ब्रह्मा ने कहा--ऐसा ही हो, तुमने बड़ा तप किया है। (शिवजी कहते हैं) । मैंने और ब्रह्मा ने मिलकर उसे वर दिया। फिर ब्रह्मा कुम्भकर्ण के पास गये । । उसे देखकर उनके मन में बड़ा आश्चर्य हुआ। । ॐ जौं एहि खल नित करब अहारू के होइहि सव उजारि संसारू सारद प्रेरि तासु मति फेरी ॐ माँगेसि नींद मास पट केरी पनि जो यह दुष्ट नित्य आहार करेगा, तो सारा संसार ही उजाड़ हो जायेगा। ब्रह्मा ने सरस्वती को प्रेरणा करके उसकी बुद्धि को फेर दिया । उसने छः महीने एमा की नींद माँग ली । ए - गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर साँशु ।। राम) - तेहि माँगेउ भगवंत पक्ष् कसल असत अनुरागु।१७७ को ब्रह्मा फिर विभीषण के पास गये और बोले-हे पुत्र ! वर माँगो । उसने भगवान् के कमल ऐसे चरणों में निर्मल ( निष्काम और अनन्य ) प्रेम माँगा ।। तिन्हहिं देइ बर ब्रह्म सिधाए ॐ हरपित ते अपने गृह शाए । |मय तनुजा मन्दोदर नामा ॐ परम सुन्दरी नारि ललामा ने उनको वर देकर व्रह्मा चले गये । वे ( तीनों भाई ) भी आनंदित होकर ॐ अपने घर आये। मय दानच की मंदोदरी नाम की कन्या अत्यन्त रूपवती और को सुन्दरी स्त्रियों में शिरोमणि थी । ॐ सोइ मय दीन्ह रावनहि आनी ॐ होइहि जातुधानपति जानी | हरषित भयेउ नारि भलि पाई ॐ पुनि दोउ बंधु विश्रादेसि जाई | मय ने उसे लाकर रावण को दिया । वह जानता था कि यह राक्षसों का । राजा होगा। अच्छी स्त्री पाकर रावण प्रसन्न हुआ और फिर जाकर उसने दोना । | भाइयों का भी विवाह कर दिया है। १. पुत्री ।।