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रामचरितमानस
उत्पत्ति, स्थिति (पालन, और संहार (नाश) करने वाली और क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणकारिणी राम की प्रियतमा सीता को मैं नमस्कार करता हूँ ।।५।।
जिसकी माया के वश में समस्त संसार, ब्रह्मादिक देवता तथा असुर हैं, जिसकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा जगत् सत्य प्रतीत होता है,और जिसके चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा करने वालों के लिये एक-मात्र नौका स्वरूप हैं; समरत कारणों से परे उन राम कहाने वाले भगवान हरि की मैं वन्दना करता हूँ ॥६॥
अनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा रामायण में वर्णित और कुछ अन्यत्र से भी प्राप्त श्रीरघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिये अति मनोहर भाषा की रचना में विस्तृत करता है ॥७॥
जिनके स्मरण करने से सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं, जो गणों के स्वामी हैं, और जिनका मुख हाथी के मुख के समान सुन्दर है, वे ही बुद्धि की राशि और सब शुभ गुणों के घर श्रीगणेशजी मुझ पर कृपा करें ॥१॥