पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२१२

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ला : = २०६ सुनहु सकल रजनीचर जूथा' के हमरे वैरी विवुध बरूया' राम) ते सनमुख नहिं करहिं लराई ॐ देखि सवल रिपु जाहिं पराई हे सब राक्षसों के समूह ! सुनो। देवतागण हमारे शत्रु हैं। वे सामने एम् आकर युद्ध नहीं करते । बलवान शत्रु को देखकर भाग जाते हैं। * तिन्हकर मरन एक विधि होई के कहउँ बुझाइ सुनहु अव सोई द्विज भोजन मख' होम सराधा ॐ सत्र के जाई करहु तुम्ह बाधा उनका मरण एक ही उपाय से हो सकता है । मैं समझाकर कहता हूँ । के * अब उसे सुनो । उनके ब्रह्मभोज, यज्ञ, हवन और श्राद्ध में तुम लोग जाकर । बाधा डालो। है । छुधा हीन बल हीन सुर सहजहिं मिलिहहिं आई। तब माहिउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ।१८१ | भूख से दुर्बल और बल से हीन देवता तब सहज ही में आ मिलेंगे । तर मैं उन्हें अच्छी तरह वश में करके मारूगाया छोड़ दूंगा। राम मेघनाद कहुँ पुनि हॅकरावा” ॐ दीन्ही सिख वलु वयरु बढ़ावा जे सुर समर धीर बलवाना ॐ जिन्हके लारवे कर अभिमाना उसने फिर मेघनाद को बुलवाया और सिखा-पढ़ाकर देवताओं के प्रति * उसके बैर-भाव को ओजना दी। फिर कहा--हे पुत्र ! जो देवता युद्ध में धीर और बलवान हैं और जिन्हें लड़ने का अभिमान है-- * तिन्हहिं जीति रन आनेसु वाँधी ॐ उठि सुत पितु अनुसासन काँधी ॐ एहि बिधि सवही अग्या दीन्ही ॐ पुन चलेउ गदा कर लीन्ही उनको युद्ध में जीतकर बाँध लाना । पुत्र ने उठकर पिता के आदेश को ॐ शिरोधार्य किया। इस तरह उसने सबको आज्ञा दी और स्वयं भी हाथ में गदा लेकर चला ।। चलत दसानन डोलति अवनी' के गर्जत गर्भ सवहिं सुर रवनी रावन आवत सुनेर सोहा ॐ देवन्ह तके मेरु गिरि खोहा । | रावण के चलने से पृथ्वी डगमगाती थी । उसकी गर्जना से देवताओं की ॐ १. समूह । २. समूह । ३. यज्ञ। ४. श्राद्ध। ५. बुलवाया। ६. कंधा दिया, माना ! ७. पृथ्वः । ।