पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२१९

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बीसलपुरी ने पहले कहकर ले २१.६ टक्कम 1नुसा ॐ देवताओं और पृथ्वी को भयभीत जानकर और उनके स्नेह-युक्त वचन है म) सुनकर शोक और संदेह को हरने वाली गंभीर आकाशवाणी हुई। ॐ जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा ॐ तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा । नाम अंसन्ह सहित मनुज अवतारा ३ लेइहउँ दिनकर वंस उदारा राम हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियो ! डरो मत । तुम्हारे लिये मैं मनुष्य का वेष धारण करूगा और उदार सूर्य-बंश में मैं अंशों-सहित मनुष्य का अवतार लें गा। कस्यप अदिति महातप कीन्हा ॐ तिन्ह कहुँ मैं पूरव बर दीन्हा ते दसरथ कौसल्या रूपा ॐ कोसलपुरीं प्रगट नर भूपा कस्यप और अदिति ने बड़ा भारी तप किया था। मैंने पहले उनको वर दिया था। वे ही दशरथ और कौशल्या के रूप में मनुष्यों के राजा होकर अयोध्यापुरी में प्रकट हुये हैं। तिन्हके गृह अवतरिहउँ जाई ॐ रथुकुल तिलक सो चारिउ भाई ) ॐ नारद वचन सत्य सव करिहउँ ॐ परम सक्ति समेत अवतरिहउँ हूँ उन्हीं के घर में जाकर हम चार भाइयों के रूप में जन्म लेंगे; क्योंकि वे 8 रघुकुल में सब से श्रेष्ठ हैं। नारद के सब वचन मैं सत्य करूगा और अपनी रामो परमशक्ति के सहित अवतार हूँगा। हरिहऊँ । सकल भूमि गरुआई के निर्भय होहु देव समुदाई गगन ब्रह्मवानी सुनि' काना ॐ तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना । । तब ब्रह्माँ धरनिहि ससुझावा ॐ अभय भई भरोस जियँ आया । मैं पृथ्वी का सब भार हर लें गा । हे देवताओं के समूह ! निर्भय होओ। । आकाश में भगवान् (ब्रह्म ) की वाणी कान से सुनकर देवता तुरन्त ही लौट गम) * गये । उनको हृदय शीतल हो गया । तब ब्रह्मा ने धरती को समझाया। वह के भी निर्भय हुई और उसके जी में भरोसा आ गया। ॐ । निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ । - बानर तलु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ।१८७॥ ॐ ब्रह्मा देवताओं को यह सिखाकर कि बानर का शरीर धरकर पृथ्वी पर होने * जाकर भगवान के चरणों की सेवा करो, अपने लोक को चले गये ।। राम)-- एम)*-उ-राम-रामारामारामारीम)-राम-राम-राम-रामो