पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

| - २१७ हो गए देव संय: निज निज धामा छॐ भूमि सहित मन कहुँ चित्रामा रामे) जो कछु आयसु ब्रह्माँ दीन्हा ॐ हरये देव विलम्ब न कीन्हा सब देवता अपने-अपने लोक को चले गये। धरती सहित सबके मन को । शान्ति मिली । ब्रह्मा ने जो आज्ञा दी थी, उससे देवता बहुत आनन्दित हुये और है। उन्होंने (करने में देरी नहीं की। बनचर देह धरी छिति माहीं कुछ अतुलित बल प्रताप तिन्ह पाहीं गिरि तरु नख आयुध सब्बीरा ६ हरि मारग चित्तवहिं मतिधीरा पृथ्वी पर उन्होंने वानर को शरीर धारण किया। उनमें अपार चल और प्रताप. था। पर्वत, वृक्ष और न ही उन सव वीरों के शस्त्र थे । वे धीरे बुद्धि वाले भगवान् के आने की राह देखने लगे। गिरि कानन जहँ तहँ भरि पूरी ॐ रहे निज निज अनीक' रुचि रूरी ॐ यह सब रुचिर चरित मैं आखा ॐ अव सो सुनहु जो बीचहिं राखा राम) : पर्वत और जङ्गल-जहाँ-जहाँ थे, वहाँ वे वानर अपनी-अपनी सुन्दर सेना के | ॐ बनाकर अच्छी तरह रहने लगे। यह सब सुन्दर चरित्र मैने कहा ) अब उसे : सुनो, जिसे बीच में रख लिया था। अवधपुरी रघुकुल मनि. राऊ ॐ बेद विदित तेहि दसरथ नाऊँ राम धरम धुरंधर गुननिधि . यांनी केले हृदयँ भगति मति सारँगपानी अवधपुरी में रघु के कुल में मणि के समान राजा दशरथ हुबे, जिनका नाम वेदों में विख्यात है। वे बड़े धर्मात्मा, गुणों के भण्डार और ज्ञानी थे और ॐ विष्णु भगवान् के लिये हृदय में भक्ति और बुद्धि रखने वाले थे। । र कौसल्यादि नारि प्रिय सब अचरन पुनीत । एम) * पति अनुकूल प्रेस दृढ़ हरि पद कमल विनीत १८८। । | कौशल्या आदि उनकी प्यारी रानियों का आचरण वड़ा पवित्र था। वे ए पति के अनुकूल थीं और भगवान् के कमल ऐसे चरणों में उनकी दृढ़ प्रेम था है और वे बड़ी विनीत थीं। एक बार भूपति मन माहीं ॐ भई गलानि मोरे सुत नाहीं । गुर गृह गयेउ तुरत महिपाला ॐ चरन लागि करि विनय विसाला १. सेना । २. सुन्दर।