पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

| - बाल-काण्ड - २१६ ऊँ कैकेई कहँ नृप सो दयॐ ॐ रहेउ सो उभय भाग पुनि भयऊ राम कौसल्या कैकेई हाथ धरि ॐ दीन्हु सुमित्रहि मन प्रसन्न करि एम् | है . उस आधे के आधे भाग को राजा ने कैकेयी को दिया। शेष जो वचा, छ सुमो उसके भी दो भाग किये गए और राजा ने उनको कौशल्या और कैकेयी के हाथ है पर धरकर (उनकी अनुमति लेकर) उनका मन प्रसन्न करके, सुमित्रा को दिया। एहि बिधि गर्भसहित सब नारी की भई हृदयँ हरषित सुख भारी * जा दिन ते हरि गर्भहिं आए ॐ सकल लोक सुख संपति छाए | इस प्रकार सब स्त्रियाँ गर्भवती हुईं। वे हृदय में बहुत आनंदित हुई। उन्हें बेड़ा सुख मिला। जिस दिन से भगवान् गर्भ में आये, सारे लोकों में सुख और सम्पत्ति छा गये । मंदिर महुँ सब राजहिं रानी के सोभा सील तेज की खानीं ॐ सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ ॐ जेहि प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ | सब शोभा, शील और तेज की खान रानियाँ रनवास में विराजती थीं। के इस प्रकार कुछ समय सुख-सहित बीत गया और प्रभु के प्रकट होने का अवसर राम आ गया। | - जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।। - चर अरु अचर हरजुत् राम जनम सुख–ल।१९.०॥ योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सब अनुकूल हो गये। चर और अचर । सब आनंदमय हो गये; क्योंकि राम का जन्म सुख का मूल है। तो नौमी तिथि मधु मास पुनीता ॐ सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ॐ मध्य दिवस अति सीत न घामा ॐ पावन काल लोक विस्रामा सुमो चैत्र का पवित्र महीना था; नवमी तिथि थी । शुक्ल-पक्ष और भगवान् का है प्रिय अभिजित मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सरदी थी न धूप । राम वह पवित्र समय सब लोकों को शान्ति देने वाला था। सीतल मंद सुरभि बह बाऊ ॐ हरषित सुर संतन्ह मन चाऊ । बन कुसुमित गिरि गन मनिआरा' ॐ स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा * शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता आनंदित थे और १. मणियों से जगमगाते हुये ।