पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२५

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| २२२ ॥ चरि अना - बिग्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

  • निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार ॥१९२

ब्राह्मण, गाय, देवता और सन्तों के लिये भगवान् ने मनुष्य का अवतार हैं लिया । वे माया, गुण और इन्द्रियों से परे हैं। उन्होंने अपनी इच्छामात्र से शरीर * धारण किया है। । सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी संभ्रम चलि आईं सब रानी के हो, हरषित जहँ तहँ धाई दासी के आनँद मगन सकल पुरवासी बालक के रोने की परम प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली से वहाँ ती चली आई। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं । समस्त नगर-निवासी की आनन्द में मग्न हो गये । [ अक्रमातिशयोक्ति अलंकार] म दसरथ पुत्र जनम सुनि काना ॐ मानहुँ ब्रह्मानंद . समाना ऊँ परम प्रेम मन पुलक सरीरा $ चाहत उठन करत मति धीरा है एछ राजा दशरथ कानों से पुत्र का जन्म सुनकर मानो ब्रह्मानन्द में समा राम गये । उनके मन में बड़ा प्रेम उमड़ आया | शरीर रोमाञ्चित हो आया। बुद्धि राम्रो को धीरज देकर वे उठना चाहते हैं। * जाकरे नाम सुनत सुभ होई मोरे गृह वा प्रभु सोई। * परमानंद पूरि मन राजा ॐ कहा बुलाइ बजावहु बाजा ( यह सोचकर कि ) जिसका नाम सुनने मात्र से कल्याण होता है, वही * प्रभु मेरे घर आये हैं राजा का मन परम आनन्द से पूर्ण हो गया। उन्होंने के * ( बाजे वालों को ) बुलाकर कहा कि बाजा बजाओ। ॐ गुरु वसिष्ठ कहँ गयेउ हँकारा ॐ आए द्विजन्ह सहित नृप द्वारा के रामको अनुपम बालक देखेन्हि जाई रूप रासि गुन कहि न सिराई | गुरु वशिष्ठ के पास बुलावा गया । वे ब्राह्मणों को साथ लिये हुये राजद्वार रामो पर आये। उन्होंने जाकर अद्भुत बालक को देखा, जो रूप की राशि है और हैं जिसके गुण कहने से चुकते नहीं । एम् । तब नंदीमुख स्राद्ध करि जातकरम सब कीन्ह। | हाटक' धेनु बसन मनि नृप विप्रन्ह कहँ दीन्ह १९३॥ समी । १. इंद्रियाँ। २. सोना ।