पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२६

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4 . बाल-कई = २२३ । तब राजा ने नान्दीमुत्र श्राद्ध करके सब जातकर्म आदि किये और म ब्राह्मणों को सोना, गाय, वस्त्र और मणियों का दान दिया ।। ध्वज पताक तोरन' पुर छावा ॐ कहि न जाइ जेहि भाँति वनावा सुमन बृष्टि अकास ते होई ॐ ब्रह्मानंद मगन सव लोई ध्वजा, पताका और बन्दनवार से नगर छा गया । जैसी सजाया गया, उसका वर्णन ही नहीं हो सकता। आकाश से फूलों की वर्षा हो रही है। सव लोग ब्रह्मानन्द में मग्न हैं। बृन्द बृन्द मिलि चलीं लोगाईं ॐ सहज सिंगार किएँ उठि धाई कनक कलस मंगल भरि थारा ॐ गावत पैठहिं भूप दुआरा * स्त्रियाँ कुण्ड की झुण्ड मिलकर चलीं । जो जैसा सिङ्गार किये थी, वैसी है * ही उठकर दौड़ी। सोने का कलश लेकर और थाल में मङ्गल द्रव्य भरकर ॐ गाती हुई वे राजा की ड्योढ़ी में प्रवेश करती हैं। म करि रति नेवछावर करहीं ® बार बार सिसु चरनन्हि परहीं। ॐ मागध सूत बंदि गन गायक ॐ पावन गुन गावहिं रघुनायक हैं। वे बालक की आरती करके निछावर करती हैं और बारबार बालक के ॐ चरणों पर गिरती हैं। मगध, सूत, बन्दीजन और गवैये रामचन्द्रजी के पवित्र राम गुर्गों का गान करते हैं। ॐ सरवस दान दीन्ह सब काहू के जेहिं पावा राखा नहिं ताहू हैं। एम। मृगमद चंदन कुकुम कीचा ॐ मची सकल वीथिन्ह विच वीचा सब किसी ने हर्ष के सारे अपना सर्वस्व दान कर दिया। जिसने पायो उसने भी नहीं रक्खा (लुटा दिया)। गली-गली में बीच-बीच में कस्तूरी चन्दन | और केसर की कीच मच गई। [ पहली चौपाई में अत्युक्ति अलंकार ] ॐ - गृह गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुखसकिंद।। रामे हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नारि नर बृन्द।१९४। एमो घर-घर में मंगलमय बघांवा बजने लगा। शोभा के मूल भगवान् प्रकट । हुये हैं। नगर के स्त्री-पुरुषों के झुण्ड के झुण्ड जहाँ-तहाँ आनन्दमग्न हो १. बन्दनवार ।