पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२८

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  1. बालकाण्ड

२२५ । के बारह दिन तक उत्सव मनाया जाता है। सो बारह दिनों तक ऐसी चहल-पहल म रही कि पता ही न चला, कब रात हुई, कव दिन।] हैं यह रहस्य काहू नहिं जाना दिनमनि' चले करत गुन गाना। राम्रो देखि महोत्सव सुर मुनि नागा ॐ चले भवन बरनत निज भागा तुम । यह रहस्य किसी ने नहीं जाना । सूर्य रामचन्द्रजी का गुणगान करते हैं। । हुये चले । यह महोत्सव देखकर देवता, मुनि और नाग अपना भाग्य सराहते । * हुये अपने-अपने घर चले । है औरउ एक हउँ निज चोरी ॐ सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी है। रामो काकभुसुण्डि संग हम दोऊ ॐ अनुज रूप जानइ नहिं कोऊ हे पार्वती ! तुम्हारी बुद्धि बहुत दृढ़ है, सुनो ! मैं अपनी एक और चोरी राम) भी कहता हूँ। काकभुशुण्डि और मैं, दोनों मनुष्यरूप में वहाँ साथ-साथ थे, है पर इस बात को कोई जान नहीं सका। राम परमानंद प्रेम सुख फूले ॐ वीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले यह सुभ चरित जान पै सोई ® कृपा राम के जापर होई | परम आनन्द और प्रेम के सुख में फूले हुये हम दोनों मन में मगन होकर ॐ गलियों में भूले हुये फिरते थे। यह शुभ चरित्र वही जान सकता है, जिस पर ॐ राम की कृपा हो। तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा ॐ दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा ॐ गज थ तुरँग हेम गो हीरा ॐ दीन्हे नृप नाना विधि चीरा उस अवसर पर जो जिस प्रकार आया, और जिसके मन को जो अच्छा लगा, राजा ने उसे वही दिया । राजा ने हाथी, रथ, घोड़ा, सोना, गाय, हीरा एम और भाँति-भाँति के वस्त्र दिये।

  • मन संतोष सबन्हिके जहँ तहँ देहिं असीस्।

सकल तनय चिरजीवड तुलसिदास के ईस ॥१९६॥ हैं। राजा ने सबके सन को संतुष्ट किया। सब लोग जहाँ-तहाँ आशीर्वाद दे हो रहे थे कि सब पुत्रो ! चिरंजीव हो; वे तुलसीदास के स्वामी हैं। १. सूर्य । २. बस्न्न ।