पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३१

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है २२८ , अच्छ 4 ॐ हैं. उनके पाँवों के तल में बज्र, ध्वजा और अंकुश की रेखायें शोभायमान है म) हैं। नूपुर की ध्वनि सुनकर मुनियों का भी मन मोहित हो जाता है। कमर में । करधनी और पेट में तीन रेखायें हैं। नाभि की गम्भीरता को तो वही जानता हूँ होम) है, जिसने उसे देखा है। ॐ भुज बिसाल भूषन जुत भूरी' ॐ हियँ हरि नख अति सोभा रूरी ॐ राम उर मनिहार पदिक की सोभा ॐ विघ्र चरन देखत मन लोभा बहुत से गहनों से युक्त उनकी भुजायें बड़ी विशाल हैं । हृदय पर बाघ राम) का नख बहुत शोभा दे रहा है । छाती पर चौकी से युक्त मणियों का हार । सुशोभित है, और ब्राह्मण ( भृगु ) के चरणों की छाप देखते ही मन लुभा रामो जाता है। केबु कंठ अति चिबुक सुहाई ॐ आनन अमित मदन छबि छाई दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे ॐ नासा तिलक को बरनै पारे | कंठ शंख के समान और ठुड्डी बहुत ही सुन्दर है। मुँह पर असंख्य कामदेवों की छटा छायी हुई है। मुँह में दो-दो दाँत हैं, लाल-लाल ओंठ हैं। नाक और तिलक का तो बर्णन ही कौन कर सकता है ? जै सुन्दर स्रबन सुचारु कपोला ॐ अति प्रिय मधुर तोतरे बोला राम चिकन कच कुञ्चित गरे ॐ बहु प्रकार रचि मातु सँवारे सुन्दर कान और बहुत ही सुन्दर गल हैं। मधुर तोतली बोली बहुत ही एम प्रिय लगती है। चिकने, चुंघराले और घने बाल हैं, जिनको माता ने बहुत ॐ प्रकार से सँवार दिया है ।। राम पीत झगुलि तनु पहिराई को जानु पानि विचरनि मोहि भाई को रूप सकहिं नहिं कहि सुति सेषा ॐ सो जानहिं सपनेहु जिन्ह देखा शरीर पर पत्नी कँगुली पहनाई हुई है। घुटनों और हाथों के बल उनका चलना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। वेद और शेष भी उनके रूप का वर्णन नहीं कर सकते । वही जान सकता है, जिसने कभी स्वप्न में भी देखा हो। - सुख संदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत । राम) हैं 8 दम्पति परम प्रेम बस कर सिसु चरित पुनीत।१९९ । * १. वहुते । २. चौकी, जो हार में लगी होती है। ३. कामदेव । ४. हाथों और घुटनों के बल । 3 रि