पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३२

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  1. बालकाण्ड

- २२६ सुख के समूह, मोह से परे, ज्ञान, वाणी, और इन्द्रियों से अतीत होने के म) पर भी वे भगवान् स्त्री-पुरुष ( राजा-रानी ) के परम प्रेम के चश होकर पवित्र , | बाल-लीला करते हैं। (राम) एहि बिधि राम जगत पितु माता के कोसलपुर बासिन्ह सुखदाता । ॐ जिन्ह रघुनाथ चल रति मानी ॐ तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी । इस प्रकार जगत् के पिता-माता रामचन्द्रजी कोशलपुर-निवासियों को । सुख देते हैं। जिन्होंने रामचन्द्रजी के चरणों में प्रीति जोड़ रखी है, हे भवानी ! या। उनकी यह प्रत्यक्ष गति है ( कि भगवान् उनके प्रेमवश बाल-लीला करके उन्हें उम् ॐ आनंद दे रहे हैं।)। रघुपति बिमुख जतन कर कोरी' ॐ वन सकइ बन्धन छोरी से जीव चराचर बस के राखे ॐ सो माया प्रभु सों भय भारखे * रामचन्द्र से विमुख रहकर मनुष्य चाहे करोड़ों उपाय करे, परंतु उसका यो संसार का बन्धन कौन खोल सकता है । जिस माया ने चराचर जीवों को वश * में कर रखा है, वह भी भगवान् से भय खाती है। राम) भूकुटि बिलास नचावइ ताही ॐ अस प्रभु छाँड़ि भजिअ कछु काही हुँ मन क्रम बचन छाँड़ि चतुराई के भजत कृपा करिहहिं रघुराई मो भगवान् उस माया को भौंह के इशारे पर नचाते हैं। ऐसे प्रभु को छोड़ कर कहो, किसको भेजा जाय ? मन, कर्म और वचन से चतुराई छोड़कर भजते ही रामचन्द्र कृपा करेंगे। । एहि विधि सिसु बिनोद प्रभु कीन्हा के सकल नगरवासिन्ह सुख दीन्हा । लेइ उर्छग कबहुँक हलरावै ॐ कबहूँ पालने घालि झुलावै इस प्रकार से प्रभु ने बाल-कीड़ा की और सब नगर-निवासियों को सुख दिया। माता कभी उन्हें गोद में लेकर हिलाती-डुलाती थीं, और कभी हिंडोले में डालकर कुलाती थीं । - प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जाल।। एम् = सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान ॥२००। एम * . कौशल्या प्रेम में मग्न थीं । रात और दिन बीतना वे नहीं जानती थीं । ॐ १. करोड़ों ।