पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३३

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ॐ २३० " छ न । पुत्र-प्रेम के वश में, कौशल्या उनकी बाल-लीलाओं का गान किया करती थीं। मो; एक बार जननी अन्हवाए' ॐ करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए। निज कुल इष्ट देव भगवान की पूजा हेतु कीन्ह असनाना । । एक बार माता ने रामचन्द्रजी को नहला-धुलाकर, शृङ्गार करके, हिंडोले पर पौढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्ट-देव भगवान की पूजा के लिये स्नान किया। में करि पूजा नैवेद्य चढ़ावा ॐ पु, गई जहँ पाक बनावा के शिम), बहुरि मातुः तहँवाँ चलि. आई को भोजन करत देखि सुत जाईराम) पूजा करके नैवेद्य चढ़ाया । फिर स्वयं वहाँ गई, जहाँ रसोई बनाई गई हैं। रामो थी। फिर माता वहीं ( पूजा के स्थान में ): लौट आईं. और फिर वहाँ जाने पर ॐ पुत्र को भोजन करते देखा। राम गै जननी सिसु पहँ भयभीता ® देखा बाल तहाँ पुनि सूता * बहुरि आइ देखा सुत सोई ॐ हृदय कंप. मन धीर न होई । माता भयभीत होकर पुत्र के पास गई, तो वहाँ बालक को सोया हुआ देखा। फिर लौटकर देखती हैं, तो वही पुत्र वहाँ ( भोजन कर रहा है। उनका हृद्य काँपने लगा और मन में धैर्य न रहा। इहाँ उहाँ दुई बालक देखा ॐ मतिभ्रम मोरि कि आन बिसेषा नको ॐ देखि रामः जननी अकुलानी ॐ प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानीः | ( माता सोचने लगी--) यहाँ और वहाँ मैंने दो बालक देखे.। यह मेरी बुद्धि को भ्रम है या और कोई विशेष कारण है। प्रभु राम ने माता को घबड़ाई राम हुई देखकर मधुर मुसकान से हँस दिया। - देखरावा निज मातहीं अदभुत रूप अखंड। ॐ रोम रोम प्रति लागहीं बेटि कोटि ब्रह्मड।२०१ ॐ तब उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया। एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्मांड लगे थे। . .. . * अगनित रबि ससि सिव चतुरानन ॐ बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन काल करम गुन ग्यान सुभाऊ ॐ सोउ देखा जो सुना ने काऊ राम | अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत-से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, के ।