पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३४

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£ बा । * २३१ ॐ बन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव आदि के साथ बह भी देखा, जिसे म) कभी किसी ने सुना भी नहीं था। देखी माया सच विधि गाढ़ी % अति सभीत जोरे कर टाढ़ी राम) देखा जीव नचावइ जाही $ देखी भगति जो छोरइ ताही | सब प्रकार से बलवती माया को देखा जो अत्यन्त भयभीत होकर (भगवान् ए के सामने) हाथ जोड़े खड़ी है। जीव को भी देखा, जिसे वह माया नचाती है। है और भक्ति को भी देखा, जो उस जीव को माया से छुड़ा देती है। तन पुलकित मुख बचन न आवा ॐ नयन छू दि चरनन्हि सिरु नावा विसमय वंति देखि महतारी ) भए बहुरि सिसु रूप खरारी माता का शरीर पुलकित हो आया । मुख से बचने नहीं निकला । आँखें मूदकर उसने रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नचाया। माता को आश्चर्यचकित | देखकर खर राक्षस के शत्रु भगवान् फिर बाल-रूप हो गये। राम) अस्तुति कर न जाइ भय माना ॐ जगत पिता मैं सुत करि जाना होम | हरि जननी बहु विधि समुझाई ॐ यह जनि कतहुँ कहासि सुनु माई एम) माता से स्तुति भी नहीं की जाती । उसे भय लगा कि जगत के पिता राम | को मैंने पुत्र करके जाना । भगवान् ने माता को बहुत प्रकार से समझाया और | राम कहा--हे माँ ! यह बात कहीं पर कहना नहीं । - बार बार कौसल्या विलय करवा कर जोर।। ॐ = अब जनि बहूँ ब्यापही प्रभु मोहिं माया तोरि।२०२ कौशल्या बार-बार हाथ जोड़कर विनय करती है कि हे प्रभु ! तुम्हारी । माया अब मुझे कभी न व्याये । राम बालचरित हरि बहु विधि कीन्हा ॐ अति आनँद दासन्ह कहँ दीन्हा ॐ कछुक काल बीते सब भाई के बड़े भए परिजन - सुखदाई भगवान ने बहुत प्रकार से बाल-लीलाएँ कीं; और दासों को बहुत सुख । दिया । कुछ समय बीतने पर कुटुम्बियों को सुख देने वाले चारों भाई बड़े हुये । चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई ॐ विप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई है। मे) परम मनोहर चरित अपारा 3 करत फिरत चारिङ सुकुमारा । तब गुरु ने कर चूड़ाकर्म-संस्कार किया। ब्राह्मणों ने फिर वहुत-सी