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३ राम -राम -राम)-राम -पला-राम -राम -राम -राम -राम -राम -राम) * २३२ . अछfdनवास ॐ दक्षिणा पाई। चारो सुन्दर राजकुमार बड़े मनोहर और अपार चरित करते फिरते हैं। रामो मन क्रम बचन अगोचर जोई ॐ दसरथे अजिर विचर प्रभु सोई राम) छ भोजन करत बोल जव राजा ॐ नहिं आवत तजि वाल समाजा ॐ मोजो मन, कर्म और बेचन तथा इन्द्रियों से परे हैं, वही प्रभु दशरथ के रामो । आँगन में विचरण कर रहे हैं। भोजन करते समय जब राजा बुलाते हैं, तब वे एम) अपने बाल-सखाओं का समाज छोड़कर नहीं आते।। है कौसल्या जब बोलन जाई ॐ ठुमुकि ठुमुकि 'प्रभु चलहिं पराई है * निगम नेति सिव अंत न पाया ॐ ताहि धरै जननी हठि धावा को धूसर धूरि भरें तलु आए ॐ भूपति बिहँसि गोद बैठाए म) ॐ कौशल्या जब बुलाने जाती हैं, तब प्रभु ठुमक-ठुमक भाग चलते हैं। कैं (A) जिसको वेद नेति ( इतना ही नहीं ) कहते हैं, और शिवजी ने जिसका अन्त म) ॐ नहीं पाया, माता उसे हठपूर्वक पकड़ने दौड़ती हैं। वे शरीर में धूल लपेटे हुये (म आये और राजा ने हँसकर उन्हें गोद में बैठा लिया। कुँ भोजन करत चपत चित इत उत अवसरु पाई। जि चले किजात सुखदाधि ओदन' लपटाइ २०३ भोजन करते हुये, चंचल चित्त से, सुख में दही और भात लगाये किलॐ कारी मारते हुये वे इधर-उधर अवसर पाकर भाग चलते हैं। राम बालचरित अति सरल सुहाए ॐ सारद सेष संभु सुति गाए ॐ जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता ॐ ते जन चंचित किए बिधाता राम रामजी की बहुत ही सरल, सुन्दर और भोली बाल-लीलाओं का सरस्वती, । शेष, शिवजी और वेदों ने गान किया है। जिनका मन इन चरित्रों में अनुरक्त को ए) नहीं हुआ, ब्रह्मा ने उन मनुष्यों को सुख से वंचित कर दिया है। भए कुमार जवहिं सब भ्राता ॐ दीन्ह जनेऊ गुर पितु माता गुर गृहँ गए पढ़न रघुराई की अलप कील विद्या सबे आई सब भाई जब कुमारावस्था के हुये, तब गुरु, पिता और माता ने उनका के यज्ञोपवीत-संस्कार कर दिया । रामचन्द्रजी गुरु के घर में विद्या पढ़ने के लिये * गये और थोड़े ही समय में उन्हें सब विद्यायें आ गईं। १. भात । । आये और राजा उसे हठपूर्वक पक) कहते हैं, क-कुमक भाग