पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२३७

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। २३४ ॐ ॐ मानी । ही संयोग उपस्थित करते हैं। वे मन लगाकर वेद और पुराण सुनते हैं और फिर ने स्वयं छोटे भाइयों को सब समझाकर कहते हैं। ॐ प्रातकाल उठि के रघुनाथा ॐ मातु पिता गुरु नावहिं माथा हुँ यसु मॉगि करहिं पुर काजा ॐ देखि चरित हरषइ मन राजा | रामचन्द्रजी प्रातःकाल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं । और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं। उनके चरित्र देख-देखकर राजा मन में हर्षित होते हैं। ॐ ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप । भगत हेतु नाला विधि व्रत चरित्र अनूप ॥२०५॥ होन) जो सर्वव्यापक, अखंड, इच्छारहित, अजन्मा, निराकार और जिसका न नाम है राम है न रूप, वही भगवान भक्त के लिये तरह-तरह के अनुपम चरित्र करते हैं। है यह सब चरित कहा मैं गाई ॐ आगिलि कथा सुनहु मन लाई । बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी की बसहिं विपिन सुभ आखम जानी शुरू यह सब चरित्र मैं ( तुलसीदास ) ने गाकर कहा । अब आगे की कथा मन लगाकर सुनो। बड़े ज्ञानी सुनि विश्वामित्र बन में शुभ आश्रम जानकर । । बसते थे। जहँ जप जग्य जोग भुनि कृरहीं ॐ अति मारीच सुबाहुहि डरहीं म) देखत जग्य निसाचर धावहिं के करहिं उपद्रव मुनि दुख पावहिं राम) | वहाँ वे मुनि जप, यज्ञ और योग-साधन करते थे, परन्तु मारीच और सुबाहु राम) से बहुत डरते थे। यज्ञ देखते ही राक्षस दौड़ पड़ते थे और उपद्रव मचाते थे, हैं जिससे मुनि दुःख पाते थे। एम) गाधितनय मन चिंता व्यापी ॐ हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी है तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा ॐ प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा गाघि के पुत्र विश्वामित्र के मन में चिन्ता समाई कि ये पापी राक्षस । भगवान् के मारे विना न मरेंगे। तब श्रेष्ठ मुनि ने मन में विचार किया कि पृथ्वी * का भार हरने के लिये भगवान् ने तो अवतार लिया है। एहूँ मिस देखौं पद जाई ॐ कृरि विनती नउँ दोउ भाई के ॐ ग्यान विराग सकल गुन अयना ॐ सो प्रभु मैं देखच भरि नयना है