पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२४०

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ॐ सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी ॐ हृदयँ हरप माना मुनि ग्यानी है। तब वसिष्ठ बहु विधि ससुझावा ॐ नृप संदेह नास कहँ पावा प्रेम के रस में सनी हुई राजा की वाणी सुनकर, ज्ञानी मुनि ने हृदय में (एम बड़ा हर्ष माना । तब वशिष्ठ ने बहुत प्रकार से राजा को समझाया, जिससे राजा का संदेह नाश को प्राप्त हुआ। एम् अति आदर दोउ तनय बोलाए ॐ हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए । मेरे प्राननाथ सुत दोऊ ॐ तुम्ह सुनि पिता अनि नहिं कोऊ * राजा ने बहुत आदर के साथ दोनों पुत्रों को बुलाया और हृदय से लगा। कर बहुत तरह से उन्हें शिक्षा दी। फिर कहा--दोनों पुत्र मेरे प्राणों के स्वामी हैं, हे मुनि ! आप इनके पिता हैं, दूसरे कोई नहीं। होम | सौंपे झुपति रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस।। - जननी भवन गए प्रश्न चले नाई पद सीस॥२०८।।(१) । राजा ने बहुत प्रकार से आशीर्वाद देकर ऋषि को अपने पुत्र सौंपे । फिर प्रभु माता के घर में गये और उनके चरणों में सिर नवाकर चले ।। 3 पुरुषसिंह दोउ बीर हर्षि चले लिं भय हर।। छूपासिंधु भतिधीर अखिल बिस्व करनझरल२०८(२) पुणे पुरुषों में सिंह रूप दोनों भाई मुनि का भय हरने के लिये हर्षित होकर । चत्ते । वे कृपा के समुद्र, धीर-बुद्धि और सम्पूर्ण जगत् के कारण के भी कारण हैं। 'अरुन नयन उर् बाहु विसाला ॐ नील जलज तनु स्याम तमाला । म) कटि पट पीत कसे बर भाथा 8 रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा उनके नेत्र लाल हैं; छाती चौड़ी और भुजायें विशाल हैं; शरीर नीले राम कमन और तमाल वृक्ष की तरह श्याम है, कमर से पीताम्बर और सुन्दर तरकस उम) के कसे हैं। उनके दोनों हार्थों में सुन्दर धनुष और बाण हैं। रामा स्याम गौर सुन्दर दोउ भाई के विस्वामित्र महानिधि पाई ॐ प्रभु ब्रह्मन्यदेव' मैं जाना ॐ सोहि निति पिता तजेउ भगवाना १. ब्राह्मणों के भक्त । २. लिये ।।