पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२४१

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| श्याम और गौर वर्ण के दोनों भाई सुन्दर हैं। विश्वामित्र ने बड़ा भारी ॐ ख़जाना पा लिया। वे सोचने लगे- मैं जान गया कि प्रभु ब्रह्मण्यदेव हैं, मेरे लिये म) | ॐ भगवान् ने अपने पिता को भी छोड़ दिया है। राम) चले जात मुनि दीन्हि देखाई ॐ सुनि ताड़का क्रोध करि धाई ॐ एकहि बान प्रान हरि लीन्हा ॐ दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा राम : राह में चले जाते हुये मुनि ने ताड़का को दिखला दिया। वह इनके शब्द | सुनते ही क्रोध करके दौड़ी। राम ने एक ही बाण से उसका प्राण हर लिया और सुम उसे दीन जानकर अपना पद ( अपना दिव्य स्वरूप ) दिया। तव रिषि निज नाथहि जिय चीन्ही ॐ विद्यानिधि कहुँ विद्या दीन्ही जातें लाग न छुधा पिपासा ॐ अतुलित बल तनु तेज प्रकासा तब ऋषि ने मन में अपने स्वामी को पहचाना और विद्या के भण्डार को * उन्होंने ऐसी विद्या प्रदान की, जिससे भूख-प्यास न लगे और शरीर में अतुलित ॐ बल और तेज का प्रकाश हो। के - आयुध सर्व समर्षि के प्रभु निज आलम आनि। एम् - ॐ भूल फल भोजन दीन्ह भगत हित जानि ॥२०६॥ राम्। सब अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके सुनि रामचन्द्रजी को अपने आश्रम में ले * आये । और उन्हें भक्तों का हितकारी जानकर कंद, मूल और फल का भोजन * * दिया। प्रात कहा मुनि सन रघुराई के निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई होम करन लागे मुनि झारी ॐ आ रहे मख की रखवारी सवेरे राम ने मुनि से कहा-आप जाकर निर्भय होकर यज्ञ कीजिये । यह है सुनकर सब मुनि हवन करने लगे। स्वयं यज्ञ की रखवाली पर रहे। . . ॐ सुनि मारीच निसाचर कोही' ॐ लै सहाय धावा मुनि द्रोही छै एम् बिनु फर वान राम तेहि मारा ॐ सत जोजन गा” सागर पारा है यह समाचार पाकर मुनियों का शत्रु क्रोधी राक्षस मारीच अपने सहायकों ए) को लेकर दौड़ा । राम ने बिना फल वाला बाण उसे मारा। वह समुद्र के पार है सौ योजन पर जा गिरा। | ॐ १. क्रोधी । २. गया।