पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२४२

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बाल । ' - २३६ है। ॐ पावक सर सुबाहु पुनि मारा की अनुज निसाचर कटक सँघारा हैं मारि असुर द्विज निर्भयकारी ॐ अस्तुति करहिं देव मुनि झारी एम

फिर राम ने सुबाहु को अग्नि-बाण से मारा १ छोटे भाई लक्ष्मण ने है। ए) राक्षसों की सेना का संहार कर डाला। इस प्रकार राम ने राक्षसों को मारकर उनको ब्राह्मण को निर्भयकर दिया, तब समस्त देवता और मुनि स्तुति करने लगे। तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया ले रहे कीन्हि विप्रन्ह पर दाया भगति हेतु बहु कथा पुराना ॐ कहे विष जद्यपि प्रभु जाना रामचन्द्रजी ने वहाँ कुछ दिनों तक और रहकर ब्राह्मणों पर दया की। भक्ति । के कारण ब्राह्मणों ने बहुत-सी कथायें और पुराण कहे, यद्यपि भगवान् सब जानते थे । तब मुलि सादर कहा बुझाई छ चरित एक प्रभु देखि जाई धनुषजग्य सुनि रघुकुल नाथा ॐ हरपि चले मुनिवर के साथ तब सुनि ने आदर-सहित समझाकर कहा कि हे प्रभो ! चलकर एक चरित्र । देखना चाहिये । धनुष-यज्ञ की बात सुनकर रघुकुल के स्वामी रामचन्द्र श्रेष्ठ मुनि (राम) के साथ प्रसन्न होकर चले ।। अखिम एक दीख मग माहीं $ खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं । एम् पूछा सुनिहिं सिला प्रभु देखी ॐ सकल कथा मुनि कही विसेपी | राह में एक आश्रम दिखाई पड़ा। पर वहाँ पशु-पक्षी, जीव-जन्तु कोई भी नहीं था। पत्थर की एक शिला को देखकर प्रभु ने पूछा, तब मुनि ने विस्तारसहित सब कथा कही । गौतमनारी सापबस उपल' देह धरि धीर । राम चरन कमल रज चाहती कृपा करहु रघुवीर ॥२१०॥ हे राम ! गौतम मुनि की स्त्री अहल्या शाप के वश में पत्थर को शरीर रामो धारण किये हुए बड़े धीरज से आपके कमलरूपी चरणों की धूलि चाहती है। इस पर कृपा कीजिये ।। एम् छंद-परसत पद पावन सोनसावन प्रगट भई तपपुञ्ज सही न ॐ देवत रघुनायझजन सुखदायसनमुखहोइ र जोरि रही १. पत्थर । Lan. T he