पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२४७

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। २४४. ॐ चट नस तरह से सुहावना था, देखकर विश्वामित्र ने कहा—हे सुजान रामचन्द्र ! मेरा मनः । म कहता है कि यहीं रहा जाय । भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता # उतरे तहँ मुनि बृन्द समेताः । राम विस्वामित्र. महामुनि , आए ॐ समाचार मिथिलापति पाए । कृपा के धाम राम ‘बहुत अच्छा' कहकर, वहीं मुनियों के समूह के साथ राम ठहर गये। मिथिलापति जनक ने जब यह समाचार पाया कि मुनियों में श्रेष्ठ रामो है विश्वामित्र आये हैं, । संगसचिव सुचि भूरि भट असुर बर शुर ग्याति। एम् । चले मिलनलुलिनायकहिमुदिताउ हि भाँति२१४ रामा .. तब विश्वासपात्र मन्त्री, बहुत-से योद्धा, श्रेष्ठ ब्राह्मण, गुरु ( शतानन्द ) । और सजातीय लोगों को साथ लेकर इस प्रकार आनन्दित राजा मुनियों के * स्वामी विश्वामित्र को मिलने चले ।। कीन्ह प्रनाम, चरन धरि माथा दीन्हि असीस मुदित मुनि नाथा हुँ राम बिप्रबृन्द सब सादर बंदे ॐ जानि. भाग्य बड़ राउ अनंदे राम राजा ने मुनि के चरणों पर मस्तक रखकर प्रणाम किया। मुनियों के स्वामी एम). विश्वामित्र ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। राजा ने सब ब्राह्मणों को भी आदर- राम सहित प्रणाम किया और अपना बड़ा भाग्य जानकर आनन्दित हुये । खु कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा ॐ विस्वामित्र नृपहि बैठारा । ॐ तैहि अवसर आए दोउ भाई ॐ गए रहे देखन फुलवाई । बार-बार कुशल-प्रश्न करके विश्वामित्र ने राजा को बैठाया। उसी समय में दोनों भाई आ गये, जो फुलचाड़ी देखने चले गये थे। स्याम गौर मृदु वयस' किसोरा ॐ लोचन सुखद बिस्व चित चोराः ॐ एम उठे सकल जब रघुपति आए ॐ विस्वामित्र निकट बैठाए राम्। सुकुमार किशोर अवस्था वाले श्याम और गौर वर्ण के दोनों कुमार नेत्रों को सुख देने वाले और सारे विश्व के चित्त के चुराने वाले हैं। राम जब आये, के तब. सब उठकर खड़े हो गये । विश्वामित्र ने उन्हें अपने पास बैठा लिया। १. उम्र ।। |