पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२४९

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। २४६ : अच्छf भा . कर मन-ही-मन मुसकुराते हैं। मुनि ने कहा-ये रघुकुल के शिरोमणि महाराज होने दशरथ के पुत्र हैं। मेरे हित के लिये राजा ने इन्हें मेरे साथ भेजा है। ॐ = राम लखनु दोउ बंधु बर रूप सील बल धाम ।। | मखराखेउ सबु साखि' जगु जिते असुर संग्रामा२१६ ये दोनों श्रेष्ठ भाई राम और लक्ष्मण रूप, शील और बल के धाम हैं। में सारा जगत् साक्षी है कि इन्होंने असुरों को युद्ध में जीता और मेरे यज्ञ की रक्षा. की है। मुनि तव चरन देखि कह राऊ ॐ कहि न सकउँ निज पुन्य प्रभाऊ राम सुन्दर स्याम गौर दोउ भ्राता ॐ आनंदहू के आनँददाता राजा जनक ने कहा—हे मुनि ! आपके चरणों को देखकर मैं अपना राम) पुण्य-प्रभाव कह नहीं सकता। ये श्याम और गौर वर्ण के दोनों भाई आनन्द लामो को भी आनन्द देने वाले हैं। इन्ह के प्रीति परसपर पावनि के कहि न जाइ मन भाव सुहावनि सुनहु नाथ कह मुदित विदेहू ॐ ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू। | इनकी आपस की सुहावनी पवित्र प्रीति मन को ऐसी भाती है कि उसका । वर्णन नहीं हो सकता । विदेह (जनक ) आनंदित होकर कहते हैं--हे नाथ ! । सुनो, ब्रह्म और जीव की तरह इनमें स्वाभाविक प्रेम है। राम पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू ॐ पुलक गात उर अधिक उछाहू राम ॐ मुनिहिं प्रसंसि नाई पद सीसू ॐ चलेउ लिवाइ नगर अवनीसू राजा बारबार प्रभु को देखते हैं। उनका शरीर रोमाञ्चित हो रहा है। और राम के हृदय में बड़ा उत्साह है। फिर मुनि की प्रशंसा करके और उनके चरणों में सिर एम) नवाकर राजा उनको नगर में लिवा चले ।। । सुन्दर सदन सुखद सब काला ॐ तहाँ वासु लै दीन्ह भुला एम् करि पूजा सब विधि सेवकाई ॐ गयउ राउ गृह बिदा कराई । एक सुन्दर महल, जो सब ऋतुओं में सुख देने वाला था, वहाँ राजा ने उनको ले जाकर ठहरायो । उनका सत्कार और सब प्रकार से सेवा करके राजा * विदा माँग कर अपने महल को गये। . १. साक्षी । राम-रामराम-राम -राम -राम)-E-राम-राम)-- -उम्) *राम -राम,