पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५२

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यति पाए राम पुरवासिन्ह ॐ अङ्गों में शोभा जहाँ जैसी चाहिये, वहाँ वैसी ही है। (राम) देखन नगर भूप सुत आए ॐ समाचार ॐ धाए धाम काम सव त्यागी के मनहुँ रंक निधि लूटने लागी । नगर देखने के लिये दो राजकुमार आये हैं; यह समाचार जव पुरवासियों न ॐ ने पाया तब वे घर का सब काम-काज छोड़कर ऐसे दौड़े, मानो गरीव लोग राम ख़जाना लूटने दौड़े हैं। * निरखि सहज सुन्दर दोउ भाई के होहिं सुखी लोचन फल पाई। जुवती भवन झरोखन्हि लागी ॐ निरखहिं राम रूप अनुरागी स्वभाव ही से सुन्दर दोनों भाइयों को देखकर वे लोग आँखों का फल पाकर सुखी हो रहे हैं। युवती स्त्रियाँ घर के झरोखों से लगी हुई प्रेम-सहित राम के रूप को देख रही हैं। कहहिं परसपर बचन सप्रीती ॐ सखि इन्ह कोटि काम छवि जीती (राम) सुर नर असुर नाग मुनि माहीं ॐ सोभा असि कहुँ सुनि अति नाही मी वे आपस में बड़े प्रेम से बातें कर रही हैं-हे सखि ! इन्होंने करोड़ों कामदेवों की छवि को जीत लिया है। सुर, नर, असुर, नाग और मुनियों में ऐसी । शोभा तो कहीं सुनाई नहीं पड़ती।। बिष्नु चारि भुज विधि मुख चारी छ विकट वेप सुख पंच पुरारी ही $ यह छवि सखी पटतरिय जाही अपर देव अस कोउ न | विष्णु के चार हाथ हैं, ब्रह्मा के चार मुख हैं; शिवजी का वेष भयानक और उनके पाँच मुख हैं। हे सखी ! दूसरा और कोई देवता नहीं, जिससे इस शोभा की तुलना की जाय ।। - वय किसोर सुखमा सदल स्यास गौर सुख वास।। ५ अंग अंग पर बारिश्रहि कोटि कोटि सत कास।२२० इनकी किशोर अवस्था है, ये सौन्दर्य के घर, श्याम और गौर वर्ग के सुख के धाम हैं। इनके अङ्ग-अङ्ग पर सैकड़ों-करोड़ों कामदेवों को निछावर कर देना चाहिये ।। * कहहु सखी अस को तनु धारी ॐ जो न मोह यह रूप निहारी कोउ सप्रेम बोली मृदु वानी ॐ जो मैं सुना सो सुनहु सयानी ।