पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५४

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= त्लिाई ॐ वह आग्रहपूर्वक इन्हीं से विवाह कर देगी। रीम) कोउ कह ए भूपति पहिचाने ॐ मुनि समेत सादर सनमाने ॐ सखि परंतु पन राउ न तजई % विधि वस हटि अविवेकहि भजई । राम्रो किसी ने कहा---राजा ने इन्हें पहचान लिया है। उन्होंने मुनि के सहित इनका आदरपूर्वक सम्मान किया है। हे सखी ! पर राजा प्रण नहीं छोड़ेगा। वह राम्रो होनहार के वश में हठ करके अविवेक ही को महत्व देगा । । कोउ कह जौं भल अहइ विधाता ६ सच कहूँ सुनिअ उचित फल दाता तो जानकिहि मिलिहि बरु एहू ॐ नाहिंन अलि इहाँ संदेहू कोई कहती है–यदि विधाता भले हैं और सुना जाता है कि वह सबको । ॐ उचित फल देते हैं, तो जानकी को यही वर मिलेगा । हे सखी ! इसमें संदेह नहीं है। ज विधि बस अस बने सँजोगू के तौ कृतकृत्य' होइँ सब लोग राम सखि हमरे रति अति तातें $ वहुँक ए श्रावहिं एहि नाते याने यदि दैवयोग से ऐसा संयोग बन जाय तो हम सब लोग कृतार्थ हो जायें। राम) हे सखी ! मेरे तो इसी से इतनी आतुरता हो रही है कि ये इसी नाते कभी यहाँ हैं आयेंगे ।। राम र नाहिं त हम कहूँ सुलहु सखि इन्हें कर दरसल दूरि । ए एह संघटु तब होई जब पुन्य पुशकृत भूरि ।२२२ ॐ नहीं तो हे सखी ! सुनो, हमें इनके दर्शन दुर्लभ हैं। यह संयोग तभी हो (मो सकता है, जब हमारे पूर्व जन्मों के पुण्य अधिक हों ।। है बोली अपर कहेहु सखि नीका ॐ एहि बिशाह अति हित सवही का राम कोउ कह संकर चाप कठोरा छ । स्यामल मृदु गात किसोरा । दूसरी ने कहा- हे सखी ! तुमने बहुत अच्छा कहा। इस विवाह से सभी का परम हित है। किसी ने कहा--शिवजी का धनुष कठोर है, ये साँवले राजकुमार अभी कोमल शरीर के बालक हैं। सवु असमंजस अहइ सयानी है यह सुनि अपर कहरू मृदु वानी । सखि इन्हें कहँ कोउ कोउ अस कहहीं वड़ प्रभाउ देखत लघु अहहीं । १. कृतार्थ ।