पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५५

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। २५२ . ॐ ना ८ यह सुनकर दूसरी सखी कोमल वाणी से कहने लगी हे सयानी ! सब के असमंजस ही है, पर इनके संबन्ध में कोई-कोई ऐसा कहते हैं कि ये देखने ही में ) के छोटे हैं। इनका प्रभाव बहुत बड़ा है। रामो परसि जासु पद पंकज धूरी ॐ तरी अहल्या कृत अघ भूरी राम ॐ सो कि रहिहि विनु सिवधनु तोरे ॐ यह प्रतीति परिहरिअ न भोरें । | जिनके कमल ऐसे चरणों की धूल छूकर अहल्या तर गई, जिसने बड़ा एमा भारी पाप किया था, वे क्या शिवजी का धनुष बिना तोड़े रहेंगे ? इस विश्वास रा) को भूलकर भी न छोड़ना चाहिये। जेहि बिरंचि रचि सीय सँवारी $ तेहि स्यामल बरु रचेउ विचारी तासु बचन सुनि सब हरपानी ॐ ऐसइ होउ कहहिं मृदु बानी जिस विधाता ने सीता को सँवारकर रचा है, उसी ने विचारकर साँवला वर भी रच रक्खा है। उसके वचन सुनकर सब हर्षित हुई। सब कोमल वाणी से ॐ कहने लगीं ऐसा ही हो। हैं । हिय हरषहिं बरषहिं सुमन सुनुखि सुलोचनि बृन्द।। ए 1 जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद॥२२३॥ | सुन्दर मुख और सुन्दर नेत्रों वाली स्त्रियाँ समूह-की-समूह हृदय में हर्षित होकर फूल बरसा रही हैं। जहाँ-जहाँ दोनों भाई जाते हैं, वहाँ-वहाँ परम आनन्द छा जाता है। पुर पूर्व दिसि गे दोउ भाई ॐ जहँ धनु मख हित भूमि बनाई अति विस्तार चारु गच' ढारी ॐ बिमल बेदिका रुचिर सँवारी राम कैं दोनों भाई नगर के पूरब ओर गये, जहाँ धनुष-यज्ञ के लिये (रंग } भूमि राम) बनाई गई थी। बहुत लम्बा-चौड़ा सुन्दर ढाला हुआ पक्का आँगन था, जिस पर सुन्दर और पवित्र वेदी सँवारी हुई थी। चहुँ दिसि कंचन मंच विसाला कै रचे जहाँ बैठहिं महिपाला राम तैहि पाछे समीप चहुँ पासा 8 अपर मञ्च मण्डली बिलासा चारों ओर सोने के बड़े-बड़े मञ्च बने थे, जिनपर राजा लोग बैठेंगे। उसके पीछे समीप ही चारों ओर दूसरे मञ्चों का घेरा सुशोभित था। १. फर्श । २. दूसरी ।