पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५७

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. रामा । २५४ ट न : ॐ वही दीन पर दया करने वाले राम भक्ति के कारण चकित होकर धनुष- हैं। यज्ञशाला देख रहे हैं। इस प्रकार सब कौतुक देखकर वे गुरु के पास चले । देर होम) हुई जानकर उनके मन में डर था । राम) जासु त्रास डर कहुँ डर होई ॐ भजन प्रभाउ देखावत सोई । कहि बातें मृदु मधुर सुहाई’ ॐ किए बिदा बालक बरिआई | जिसके भय से डर को भी डर लगता है, वहीं प्रभु भजन को प्रभाव दिखला रहे हैं। उन्होंने कोमल, मधुर और सुन्दर बातें कहकर बालकों को ज़बरदस्ती विदा किया। म) - सभय सप्रेम बिनीत अति सकुच सहित दोउ भाइ। लम) 3 शुर पढ़ पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाई ॥२२५॥ । - भय, प्रेम और संकोच-सहित दोनों अत्यन्त विनयी भाई गुरु के कमल ऐसे चरणों पर सिर नवाकर, आज्ञा पाकर बैठे। ॐ निसि प्रबेस, मुनि आयसु दीन्हा ॐ सवही संध्यावंदनु कीन्हा । राम कहत कथा इतिहास पुरानी ॐ रुचिर रजनि जुग जाम' सिरानी। । रात्रि का प्रवेश होते ही सुनि ने आज्ञा दी, तब सबने संध्या-बेदन किया। रामो पुरानी कथा और इतिहास कहते-कहते सुन्दर रात्रि दो पहर बीत गई। । मुनिवर सैन कीन्ह तब जाई की लगे चरन चापन दोउ भाई । जिन्ह के चरन सरोरुह लगी ॐ करत विविध जप जोग विरागी । । तब श्रेष्ठ मुनि ने जाकर शयन किया। दोनों भाई उनके पैर दाबने लगे। (राम) ॐ जिनके कमल ऐसे चरण के लिये विरक्त लोग भाँति-भाँति के जप और योग हैं। राम करते हैं, तेइ दोउ बंधु प्रेम जलु जीते गुर पद कमल चलोटत प्रीते हैं राम्। बार बार मुलि अश्या दोन्ही $ रघुबर जाइ सैन तब कीन्ही | उन्हीं दोनों भाइयों को मानो प्रेम ने जीत लिया है। वे प्रीति-सहित गुरु के कमल ऐसे पर्दा को दुबा रहे हैं। मुनि ने बार-बार आज्ञा दी, तब रामचन्द्रजी । ने जाकर शयन किया। १. पहर । २. प्रीतिपूर्वक ।