पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५८

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| * -ढाई.

  • २५५ ॐ चपत चरन लपनु उर लाएँ % सभय सप्रेम परम सचुपाए ।

पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता ॐ पौढ़े धरि उर पद जलजाता | राम के चरणों को हृदय से लगाकर भय और प्रेम-सहित बहुत आनन्दित होकर लक्ष्मण उसे दबा रहे हैं। प्रभु राम ने फिर-फिर कहा-हे तात ! अब सो जाओ। तब वे राम के कमल ऐसे चरणों को हृदय में धरकर लेट रहे। ये 5 उठे लपल निसि विगत सुनि अरुन सिखा थुनिन्। होम | गुर ते पहिले हि जगतपति जागे रामु सुजान्॥२२६॥ रात बीतने पर, मुर्गे को शब्द कानों से सुनकर लक्ष्मण उठे। जगत के । स्वामी सुजान राम भी गुरु से पहले ही जाग गये । सकल सौच करि जाइ नहाए 9 नित्य नियाहि सुनिहि सिर नार् समय जानि गुरु आयसु बाई 8 लेन प्रसून चले दोउ भाई रामे) सब शौच आदि प्रातः कृत्य करके वे जाकर नहाये । और नित्यकर्म पूरा (ग) * करके उन्होंने मुनि को मस्तक नवाया { पूजा का समय जानकर, गुरु की आज्ञा पाकर दोनों भाई फूल लेने चले । भूप बागु बर देखे जाई ३ जहँ वसन्त रितु रही लोभाई लागे बिटप मनोहर नाना ॐ वरन वरन वर वेलि विताना । उन्होंने जाकर राजा जनक का उत्तम बाग देखा, जहाँ वसंत-ऋतु लुभा हो रही है। उसमें भाँति-भाँति के मनोहर वृक्ष लगे हैं । रंग-बिरंगी उत्तम लता । के अनेक रूपों के चॅदोवे बने हैं। नव पल्लव फल सुमन सुहाए ॐ निज सम्पति सुर व लजाए राम चातक कोकिल कीर चकोरा को क्रूजत विहँग नटत' कल मोरा ॐ वृक्ष नये पत्ते, फल और फूल से सुशोभित हैं और अपने विभव से वे कल्पवृक्ष राम) को लज्जित कर रहे हैं। पपीहा, कोयल, सुआ, चकोर आदि पक्षी कलरव कर रहे • हैं और सुन्दर मोर नाच रहे हैं। रामो मध्य बाग सरु सोह सुहावी ॐ मनि सोपान विचित्र वनावा । बिमल सलिल सरसिज वहुरंगा के जल सग कुजत गुंजत शृङ्गा १. दुर्गा । ३. कल्पवृक्ष । ३. सोचते हैं।