पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२५९

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ॐ २५६ छ । | बाग के मध्य में सुहावना सरोवर शेभित है। जिसमें सीढ़ियाँ मणियों की में हैं और अद्भुत दृश्य है । जल निर्मल है, और उससे अनेक रंग के कमल हैं। जल के पक्षी कलरव कर रहे हैं और भौंरे गुञ्जार कर रहे हैं। - बागु तड़ाग बिलोकि प्रभु हरचे बंधु समेत ।। * पर रस्य आरामु' यह जो रामहिं सुख देत।२२७ बाग और सरोवर को देखकर प्रभु रामचन्द्रजी भाई-सहित हर्षित हुये। वह बाग वास्तव में बहुत ही रमणीय है, जो राम को भी सुख दे रही है। ॐ चुहँ दिसि चितइ पूछि मालीगन की लगे लेन दल फूल मुदितमन हो तैहि अवसर सीता तहँ आई ॐ गिरिजा पूजन जननि पठाई चारों ओर दृष्टि दौड़ाकर और मालियों से पूछकर वे प्रसन्न मन से पत्र-पुष्य लेने लगे। उसी समय सीता वहाँ आईं। माता ने उन्हें पार्वतीजी की पूजा करने ॐ के लिये भेजा था । । ॐ संग सखीं सव सुभग सयानी 8 गावहिं गीत मनोहर वानी है राम सर समीप गिरिजा गृह सोहा के बरनि न जाइ देखि मन मोहा राम है साथ में सब सुन्दरी और सयानी सखियाँ मनोहर वाणी से गीत गा रही राम) हैं। सरोवर के निकट पार्वतीजी का मन्दिर सुशोभित है। उसका वर्णन नहीं किया जा सकता; देखकर मन मोहित हो जाता है। सज्जनु करि सर सखिन्ह समेता ॐ गई मुदित मन गौरि निकेता पूजा कीन्हि अधिक अनुरागी ॐ निज अनुरूप सुभग वरु माँगा। सखिय-सहित सरोवर में स्नान करके सीता प्रसन्न मन से पार्वतीजी के मन्दिर में गईं। बड़े प्रेम से उन्होंने पूजन किया और अपने योग्य सुन्दर वर माँगा। एक सखी सिय संगु विहाई ॐ गई रही देखन फुलवाई एम तैइ दोउ बंधु बिलोके जाई ® प्रेम बिवस सीता पहिं आई एक सखी, सीता का साथ छोड़कर फुलवाड़ी देखने चली गई थी। उसने एक वहाँ जाकर दोनों भाइयों को देखा और वह प्रेम से विह्वल होकर सीता के । पास आई। १. वाग। २. पार्वती ।