पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२६०

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हो । तासु दसा देखी सखिन्ह पुलक गात जलु नैन । हुँ ' कहु कारनु निज हरष कर पूछहिं सब मृदु बैन ॥२२८॥ सखियों ने उसकी दशा देखी कि उसका शरीर पुलकित है और नेत्रों में से जल भरा है। सब कोमल वचनों से पूछने लगीं कि अपनी प्रसन्नता का कारण में, बता ।। देखन बागु कुअर दुइ अएि ॐ बय किसोर सब भाँति सुहाए हैं। राम स्याम गौर किमि कहौं वखानी ॐ गिरा अनयन नयन विनु वानी | उसने कहा---दो राजकुमार बाग देखने आये हैं। वे किशोर अवस्था के का हैं और सब प्रकार से सुन्दर हैं। वे साँवले और गोरे रंग के हैं। मैं उनकी । सुन्दरता को कैसे बखान कर कहूँ ? मेरी वाणी के तो नेत्र नहीं और नेत्रों के । वाणी नहीं । सुनि हरषीं सब सखी सयानी ॐ सिय हियँ अति उतकंठा जानी है एक कहइ नृप सुत तेइ अाली ॐ सुने जे मुनि सँग आए काली सब सयानी सखियाँ यह सुनकर और सीता के हृदय में बड़ी उत्कण्ठा के जानकर प्रसन्न हुई। तब एक सखी कहने लगी-हे सखी ! ये वेही राजकुमार एम) हैं, जो सुना है कि कल विश्वामित्र मुनि के साथ आये हैं। हैं जिन्ह निज रूप मोहनी डारी ॐ कीन्हे स्ववस नगर नर नारी बरनत छबि जहँ तहँ सब लोग ॐ अवसि देखिअहिं देखन जोगू जिन्होंने अपने रूप की मोहिनी डालकर नगर के स्त्री-पुरुषों को अपने * वश में कर लिया। जहाँ-तहाँ सब लोग उन्हीं की शोभा का बखान कर रहे हैं। वे देखने योग्य हैं, अवश्य उन्हें देखना चाहिये। तासु बचन अति सियहि सुहाने की दरस लागि लोचन अकुलाने राम चली अग्र' करि प्रिय सखि सोई $ प्रीति पुरातन लखइ न कोई उसके वचन सीता को अत्यन्त ही प्रिय लगे, और दर्शन के लिये उनके ए) नेत्र अकुला उठे। उसी प्यारी सखी को आगे करके सीता चलीं। पुरातन प्रीति एम । को कोई देख नहीं रहा है। १. आगे ।