पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ॐ २५८ ... ! . . * सुमिरि सीय नारद बचन उपजी ग्रीति पुनीत । 4 चक्ति बिलोति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत ना . नारदजी के वचनों का स्मरण करके सीता के हृदय में पवित्र प्रीति उत्पन्न हुई । वह चकित होकर सब ओर इस तरह देखती हैं, जैसे डरी हुई मृगछौनी देखती है। [ कविषय वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार ] कंकल किंकिनि नूपुर धुनि सुनि के कहत लषन सन राम हृदय गुनि णमो मानहुँ मदन दु'दुभी दीन्ही # मनसा' बिस्व विजय कहूँ कीन्ही राम कंकण, करधनी और पाजेब की झनकार सुनकर राम हृदय में विचारकर 6 | राम, लक्ष्मण से कह रहे हैं---मानो कामदेव ने डंका बजाया है और विश्व को जीतने राम्रो का इरादा किया है। अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा ॐ सिय मुख ससि भए नयन चकोरा भए विलोचन चारु अचंचल की मनहुँ सकुचि निमि' तजे दृगंचल ऐसा कहकर राम ने फिर उस ओर देखा । सीता के मुखरूपी चंद्रमा के * लिये राम के क्षेत्र चकोर हो गये । सुन्दर नेत्र स्थिर हो गये। मानो निमि ने सकुचाकर पलकें छोड़ दीं । ( लड़की-दामाद का मिलन-प्रसंग देखना उचित न * जानकर महाराज जनक के पूर्वज निमि पलकों पर से उतर गये। ऐसा माना जाता है है कि सबकी पलकों पर निमि का निवास है।) देखि सीय सोभा सुखु पावा ॐ हृदय सराहत वचनु न आवा | जनु विरंचि सव निज निपुनाई ॐ विरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई है। राम), सीता की शोभा देखकर राम ने बड़ा सुख पाया। मन ही मन वे उसकी (राम) ॐ सराहना करते हैं, किन्तु सुख से वचन नहीं निकलते। मानो ब्रह्मा ने अपनी बैं राम) सारी निपुणता को मूर्तिमान कर संसार को प्रकट करके दिखा दिया है। ॐ सुन्दरता कहुँ सुन्दर करई की छवि गृह दीप सिखा जनु बरई । सव उपसा कबि रहे जुठारी छ केहि पटतरउँ विदेह कुमारी | ( यह शोभा ) सुन्दरता को भी सुन्दर करने वाली है। मानो शोभा के घर में दीप की शिखा जल रही हो। ( तुलसीदास कहते हैं ) सारी उपमाओं को तो । * कवियों ने जूठा कर दिया है। मैं जनक की पुत्री की उपमा किससे दें ? १. सन्शा, इरादा । २. जनक महाराज के पूर्वज । ३. जल रही है।