पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२६६

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। स्नेह, शोभा और गुणे की खान जानकी को जाती हुई जाना, म) परम प्रेममय मृदु मसि कीन्हीं $ चारु चित्त भीतीं लिखि लीन्हीं समो हो गई भवानी भवन बहोरी ॐ बन्दि चरन बोली कर जोरी राम् तब परम प्रेम की कोमल स्याही बनाकर उनके स्वरूप को सुन्दर चित्तरूपी । भीत पर चित्रित कर लिया। सीता फिर पार्वतीजी के मन्दिर में गईं और उनके चरणों की बन्दना करके हाथ जोड़कर बोलींॐ जय जय गिरिवर राज किसोरी ॐ जय महेस सुख चन्द चोरी जय गजवदन षड़ानन साता ॐ जगत जननि दामिनि दुति गाता | हे पर्वतराज हिमाचल की कन्या पार्वतीजी ! आपकी जय हो, जय हो ! हे | शिवजी के चन्द्रमा ऐसे मुख की चकोरी ! अापकी जय हो ! हे हाथी ऐसे मुख वाले हैं। गणेश और छः मुंह वाले स्वामि कार्तिक की माता ! हे जगत् की माता ! विद्युत की-सी प्रभा-युक्त शरीर वाली, आपकी जय हो ! नहिं तव आदि मध्य अवगाना ॐ अमित प्रभाव बेद नहिं जाना ऊँ भव' भव' विभव पराभव कारिनि छ बिस्व बिमोहनि स्ववस विहारिनि । रामो हे पार्वतीजी ! आपका न आदि है, ने मध्य है और न अन्त है। आपके (राम) अमित प्रभाव को वेद भी नहीं जानते । आप संसार को उत्पन्न, पालन और नाश राम करने वाली हैं । आप संसार को मोहित करने वाली और स्वतन्त्र रूप से विहार (राम) ॐ करने वाली हैं। राम से पतिदेवता सुतीय सहुँ मातु प्रथम तव रेख । - महिमा अमित न सकहिं कहि सहससारदा सेख ।। पति को इष्टदेव मानने वाली श्रेष्ठ स्त्रियों में, हे माता ! आपकी प्रथम राम) गणना है। आपकी अपार महिमा को हजारों सरस्वती और शेष भी नहीं होन) कह सकते। राम सेवत तोहिं सुलभ फल चारी को बरदायिनी पुरारि पियारी ॐ देबि पूजि पद कमल तुम्हारे ॐ सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ' हे वर देने वाली, हे त्रिपुर के शत्रु शिवजी की प्रिय पत्नी पार्वतीजी. ! | आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ हो जाते हैं । हे देवि ! आपके कमल ऐसे । १. संसार । २. उत्पन्न ।