पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२६८

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- ) , छालिङ = २६५ s जानि गौरि अनकूल सिय हिय हरषु ल जात कहि। हैं एम् ६३ मंजुल मङ्गल चूल बाम अंग फरकन लोके ॥२३६॥ ए पार्वती को अनुकूल जानकर सीता के हृदय को जो हर्ष हुआ, वह कहीं नहीं जा सकता। सुन्दर कल्याण के मूल उनके बायें अंग फड़कने लगे। हृदय सराहत सीय लोनाई' ॐ गुर समीप गवले दोउ भाई के राम कहा सव कौसिक पाहीं ॐ सरल सुभाव छा छल नाहीं हृदय में सीता के सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुये दोनों भाई गुरु के पास राम ॐ गये । राम ने विश्वामित्र से सब कुछ कह दिया। क्योंकि उनका स्वभाव सरल है; छल उसे छू भी नहीं गया है। सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही ॐ पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही एम् सुफल मनोरथ होहिं तुम्हारे ॐ राम लफ्नु सुनि भये सुखारे फूल पाकर मुनि ने पूजा की । फिर दोनों भाइयों को आशीर्वाद दिया* तुम्हारे मनोरथ सफल हों ! यह सुनकर राम-लक्ष्मण सुखी हुये । । ॐ करि भोजल मुनिवर विग्यानी ॐ लगे कहन कछु कथा पुरानी विगत दिवस गुर आयसु पाई की संध्या करने चले दोउ भाई । राम श्रेष्ठ विज्ञानी मुनि विश्वामित्र भोजन करके कुछ प्राचीन कथायें कहने राम ॐ लगे । दिन बीत जाने पर, गुरु की आज्ञा पाकर दोनों भाई संध्या करने चले। रामो प्राची दिसि ससि उगेउ सुहावा ॐ सिय सुख सरिस देखि सुखु पावा राम है बहुरि विचारु कीन्ह मन माहीं ॐ सीय वदन सम हिमकर नाहीं । । पूर्व दिशा में सुन्दर चन्द्रमा उदय हुआ। उसे सीता के मुख के समान देखकर राम ने सुख पाया। फिर उन्होंने मन में विचार किया कि सीता के सुख के समान चन्द्रमा नहीं है। ) जनम सिन्धु पुनि बन्धु बिष दिल मलीन सकलंक। ले ॐ 15 सिय सुख समता पाव किमि चन्द बापुरो रंक।२३७।। एक तो उसका जन्म ( खारे ) समुद्र से हुआ, दूसरे विष उसका भाई; । तीसरे वह दिन में मलिन रहता है, चौथे कलङ्क ( काले धब्बे ) वाला है। भला, १. लावण्य, सुन्दरता । २. विश्वामिन्न ।