पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२६९

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२६६ अच्छा ॐ वह गरीब बेचारा चन्द्रमा सीता के मुख की बराबरी कैसे पा सकता है ? म) घटइ बढ्इ विरहिनि दुखदाई की शुसइ राहु निज सन्धिहिं पाई | कोक सोकप्रद पंकज द्रोही ॐ अवगुन बहुत चन्द्रमा तोही | राम) फिर वह घटता-बढ़ता है और विरहिणियों को दुख देता है; अपनी संधि एम) में पाकर राहु उसे ग्रस लेता है । वह चकवे को शोक देने वाला और कमल का द्रोही भी है। हे चन्द्रमा ! तुममें बहुत से अवगुण हैं। [ आज्ञेपालङ्कार ] बैदेही मुख पटतर दीन्हे ॐ होइ दोषु बड़ अनुचित कीन्हे । सिय सुख छवि विधु व्याज' बखानी % गुरु पहँ चले निसा बड़ि जानी । सीता के मुख से तेरी उपमा देने में बड़ा अनुचित करने का दोष लगेगा, चन्द्रमा के बहाने सीता के मुख की छवि का वर्णन करके, रात अधिक हुई जान * कर, वे गुरु के पास चले । करि मुनि चरन सरोज प्रनामा ॐ आयसु पाइ कीन्ह बिस्रामा ॐ राम बिगत निसा रघुनायक जागे ६ बन्धु बिलोकि कहन अस लागे राम) मुनि के कमल ऐसे चरणों को प्रणाम करके, आज्ञा पाकर उन्होंने विश्राम रामा किया। रात बीतने पर रामचन्द्रजी जागे और भाई को देखकर ऐसा कहने लगे-- | उयट अरुन अवलोकहु ताता ॐ पंकज कोक लोक सुखदाता । बोले लषन जोरि जुग पानी की प्रभु प्रभाव सूचक मृदु बानी । । हे तात ! देखो, सूर्य उदय हुआ है, जो कमल, चक्रवाक और समस्त संसार को सुख देने वाला है। लक्ष्मण दोनों हाथ जोड़कर प्रभु ( रामचन्द्र ) के प्रभाव को सूचित करने वाली कोमल वाणी बोले। अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन। एमो ' जिमि तुम्हार आगमन सुनि भये नृपति बलहील २३८ एम जिस प्रकार सूर्य के उदय होने से कुईं सकुचा गई, तारागणों की ज्योति ए फीकी पड़ गई; इसी प्रकार आपको आना सुनकर सब राजा बलहीन हो गये हैं। । नृप सब नखत करहिं उँजियारी ॐ टारि ने संकहिं चाप तम भारी । कमल कोक मधुकर खंग नाना ॐ हरखे सकले निसा अवसाना * सब राजा लोग तारों की तरह टिमटिमा रहे हैं, पर वे धनुष रूपी भांरी है १. बहाना।।