पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७१

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। २६८ बमोखा दें इन ॐ सीय स्वयंवरु देखिय जाई $ ईस काहि धौं' देइ बड़ाई राम) लषन कहा जस भाजन सोई ॐ नाथ कृपा तव जापर होई | चलकर सीता का स्वयंवर देखना चाहिये। देखें, ईश्वर किसे बड़ाई देते हैं राम हैं। लक्ष्मण ने कहा-हे नाथ ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही यश का पात्र होगा। हरषे मुनि सब सुन बर वानी ® दीन्हि असीस सवहिं सुख मानी पुनि मुनिवृन्द समेत कृपाला ॐ देखन चले धनुष मख साला | इस श्रेष्ठ बाणी को सुनकर सब मुनि आनन्दित हुये। सब ने सुख मानकर आशीर्वाद दिया। तव कृपालु रामचंद्रजी मुनियों के समूह-सहित धनुष-यज्ञ का | के स्थान देखने चले ।। रंग भूमि आये दोउ भाई ॐ असि सुधि सब पुरवासिन्ह पाई चले सकल गृह काज विसारी 8 वाल जुवान जरठ नर नारी । जब दोनों भाई रङ्गभूमि में आये और नगर के सब निवासियों ने ऐसी ॐ खबर पाई, तब वे बालक, जवान और बूढ़े सभी स्त्री-पुरुष घर का काम-काज राम छोड़कर दौड़ पड़े। ॐ देखी जनक भीर भइ भारी के सुचि सेवक सय लिये हँकारी । तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू ॐ असिन उचित देहु सव काहू | जब जनक ने देखा कि बड़ी भीड़ हो गई है, तब उन्होंने सब कुशल | ए सेवकों को बुलवा लिया और कहा--तुम लोग जल्दी ही सब लोगों के पास जाओ और सबको यथायोग्य आसन दो। म कहि मृदु बचन विनीत तिन्ह बैठारे नर नारि।। राम ! उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥ एम उन सेवकों ने कोमल और नम्र वचन कहकर उत्तम, मध्यम, नीच और णमो लघु सब श्रेणी के पुरुष-स्त्रियों को अपने-अपने योग्य स्थान पर बैठाया । राजकुअर तेहि अवसर आये ॐ सनहुँ मनोहरता छवि छाये । गुन सागर नागर वर बीरा 8 सुन्दर स्यामल, गौर . सरीरा उसी अवसर में राजकुमार आये। मानो सौन्दर्य ही का शरीर शोभित है। १ . न जाने । j