पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७३

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| ॐ २७० ' अति न हो सहित विदेह विलोकहिं रानी ॐ सिसु सम प्रीति न जाति बखानी है। राम) जोगिन्ह परम तत्त्वमय भासा ॐ सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा राम) जनक-सहित रानियाँ प्रभु को शिशु के समान देख रही हैं। उनकी प्रीति रामो का बखान नहीं हो सकता । योगियों को वे शान्ति, शुद्ध, सम और स्वतः gf प्रकाशमान परम तत्व के रूप में दिखाई पड़े ।। राम हरि भगतन्ह देखे दोउ भ्राता है इष्टदेव इव सब सुख दाता रामहिं चितव भाव जेहि सीया ॐ सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया | हरि-भक्तों ने दोनों भाइयों को सव सुरखों के देने वाले इष्टदेव के समान है। देखा । सीता राम को जिस भाव से देख रही हैं, वह स्नेह और सुख तो कहने * ही में नहीं आती। । उर अनुभवति न कहि सक सोऊ ॐ कवन प्रकार हइ कबि कोऊ ) ॐ जेहि विधि रहा जाहि जस भाऊ ॐ तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ रामो उस स्नेह और सुख को वे मन ही मन अनुभव कर रही हैं, पर वे भी उसे राम) कह नहीं सकतीं। फिर भला, कबि उसे किस प्रकार कहे १ इस प्रकार जिसका जैसा भाव था, उसने रामचन्द्रजी को बैसा ही देखा । [ प्रथम उल्लेख अलंकार ] राजत राज समाज महँ झोलराज किसोर ।। sle सुन्दर स्यामल गौर तनु बिस्व बिलोचन चोर २४२ सुन्दर साँवले और गोरे शरीर वाले तथा विश्व-भर की आँखों को चुराने संम) र बाल तथा क्रि का आ * वाले अयोध्या के राजकुमार इस प्रकार राजसभा में सुशोभित हो रहे हैं। ग डु समका सहज मनोहर मूरत दोऊ ॐ कोटि काम उपमा लघु सोऊ रामो सरद चन्द निन्दक मुख नीके ॐ नीरज नयन भावते' जी के सुम दोनों मूर्तियाँ स्वभाव हीं से मनोहर हैं। उनके लिये करोड़ों कामदेव की राम * उपमा भी तुच्छ है। उनके सुन्दर मुँह शरद-ऋतु के चन्द्रमा का भी उपहास एम) करने वाले हैं। और कमल ऐसे नेत्र जी के प्यारे हैं। । चितवनि चारु मार मनु हरनी ॐ भावति हृदय जाति नहिं बरनी * कल कपोल सु ति कुण्डल लोला ॐ चिबुक अधर सुन्दर मृदु बोला राम की सुन्दर चितवन कामदेव के मन को भी हरने वाली है। वह हृदय म | १. प्यारे । २. चंचल ।।