पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

| #. ' -

  • २७१ हो। ॐ को बहुत ही प्रिय लगती है। उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । सुन्दर गाल। ऐसे हैं, कानों में चञ्चल कुण्डल हैं। ठुड्डी और ओठ सुन्दर हैं। वाणी कोमल है।

कुमुद बन्धु कर निन्दुक हाँसा की भृकुटी विकट मनोहर नासा राम भाल बिसाल तिलक झलकाहीं ॐ कच'विलोकि अलि अलि लजाहीं । हँसी चन्द्रमा की किरणों का उपहास करने वाली है। भौंहें टेढ़ी और । नासिको मनोहर है। चौड़े माथे पर तिलक झलक रही है। वालों को देखकर ए भौरों की पंक्तियाँ भी लजा जाती हैं। * पीत चौतनी सिरन्हि सुहाई ॐ कुसुम कली विच वीच बनाई रेखा रुचिर कम्बु कल ग्रीवाँ 3 जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ पीले रंग की चौकोनी टोपी सिरों पर सुशोभित हैं। उसमें बीच-बीच में राम फूल की कलियाँ काढ़ी हुई हैं। शंख के समान सुन्दर गले में सुन्दर तीन रेखायें की हैं। जो मानो तीनों भुवनों की सुन्दरता की सीमा ही हैं। एमाले र कुञ्जर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका साल। एम बृष केंध हरि ठवल बल निधि बाहुबसाल।२४३॥ छाती पर गजमुक्ताओं के सुन्दरे कंठे और तुलसी की मालायें हैं। उनके कंधे बैलों के कंधों की तरह और ऐंड़ ( खड़े होने की शनि ) सिंह के समान ॐ है, वे बल के भंडार हैं, और उनकी भुजायें लम्बी हैं। म कटि तूनीर पीत पट बाँधे ॐ कर सर धनुष वाम वर काँधे ॐ पीत जग्य उपवीत सोहार को नख सिख मंजु महाछवि छाए। राम) कमर में वे तरकस और पीताम्वर बाँधे हैं। हाथों में बाण और वाँयें सुन्दर के कंधों पर श्रेष्ठ धनुष तथा पीले यज्ञोपवीत शोभायमान हैं। नख से लेकर शिखा तक उनके सारे अंग सुन्दर हैं और उन पर बड़ी छवि छाई हुई है। देखि लोग सब भये सुखारे ॐ एकटक लोचन टरत न टारे । हरपे जनकु देखि दोऊ भाई ॐ मुनि पद कमल गहे तव जाई उनको देखकर सब लोग सुखी हुये । एकटक देखते हुये नेत्र टालने से भी नहीं टलते हैं। जनैक दोनों भाइयों को देखकर हर्षित हुये। और उन्होंने जाकर मुनि के कमल ऐसे चरण पकड़ लिये। १. बाल ।