पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७६

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झाङि , क २७३ । ॐ सुनकर बहुत हँसे । उन्होंने कहा-धनुष तोड़ने पर भी विवाह होना अथाह (राम) ( कठिन ) है। फिर बिना तोड़े कौन राजकुमारी को व्याह सकता है। । एक बार कालउ किन होऊ $ सिय हित समर जितव हम सोऊ हो राम्या यह सुनि अपर धूप युसुकाने ॐ धरमसील हरिभगत सयाने एक बार तो काल ही क्यों न हो, सीता के लिये हम उसे भी युद्ध में । जीतेंगे। यह सुनकर दूसरे राजा, जो धर्मात्मा, हरि-भक्त और सयाने थे, मुसकुराये। राम सीय बिशाहबि राम गरब दूरि करि पन्ह के।। । ६83 जीति को सक संग्राम दसरथ के इन बाँकुरे ॥२३५॥ उन्होंने कहा--राजाओं के गर्व को दूर करके राम सीता को व्याहेंगे। महाराज दशरथ के रण में बाँके वीरों को युद्ध में कौन जीत सकता है ? एका वृथा मरहु जनि गाल बजाई ॐ मन मोदकन्हि' कि भूख चुताई राम सिख हमार सुनि परम पुनीता ॐ जगदम्बा जानहु जियँ सीता गाल जाकर ( बकबक करके ) व्यर्थ ही मत सरो। मन के लड्डुओं से भी कहीं भूख बुझती है ? हमारी परम पवित्र सीख को सुनकर जी में सीता को जगत् की माता समझो । जगत पिता रघुपतिहि बिचारी ॐ भरि लोचन छवि लेहु निहारी सुन्दर सुखद सकल गुनासी 8 ए दोउ बंधु संभु उर वासी एम) तथा रामचन्द्रजी को जगत् का पिता विचारकर, आँखें भरकर उनकी शोभा देख लो । सुन्दर सुख देने वाले और सब गुणे की राशि ये दोनों भाई राम) शिवजी के हृदय में बसने वाले हैं। ॐ सुधा समुद्र समीप बिहाई ॐ मृग जलु निरखि मरहु कत धाई राम करहु जाइ जी कहँ जोइ भाचा ॐ हम तो अजु जनस फल पावा समीप आये हुये अमृत के समुद्र को छोड़कर तुम मृगजल देखकर दौड़राम कर क्यों मरते हो ? फिर भाई जिसे जो अच्छा लगे, वही जाकर वह करे; हमने | तो आज जन्म लेने का फल पा लिया। । अस कहि भले भूप अनुरागे ॐ रूप अनूप विलोकन लागे देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना छ वरष सुमन करहिं कल गाना १. लड्डू।