पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२७८

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जैच्छिय सम, तो भी . ! बाल $ २७५ को - एहि बिधि उपजै लच्छि व सुंदरता सुख झूल ।। ए ! तदाप सोच समेत कबि अहहिं सीय समतुल२४७ । | इस प्रकार से जब सुन्दरता और सुख की मूल लक्ष्मी उत्पन्न हो, तो भी उसे संकोच के साथ कवि लोग सीता के समान कहेंगे । [ दूसरा उल्लेख अलंकार ] म) चल संग लै सखी सयानी 8 गावत गीत मनोहर वानी ॐ सह नवल तनु सुंदर सारी को जगत जननि अतुलित छवि भारी । सयानी सखियाँ सीता को साथ लेकर मनोहर वाणी से गीत गाती हुई ॐ चलीं । सीता के नवल शरीर पर सुन्दर साड़ी सुशोभित है। जगत्-जननी की महान् छवि अतुलनीय है। भूषन सकल सुदेस सुहाए ॐ अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए । रंगभूमि जब सिय पगु धारी ॐ देखि रूप मोहे नर नारी सब आभूषण अपने-अपने स्थान पर शोभित हैं । सखियों ने अंग-अंग में भली-भाँति सजाकर पहनाया है । जब सीता ने रंगभूमि में पैर रखा, तब । उनका रूप देखकर स्त्री-पुरुष सभी मोहित हो गये ।। ॐ हरषि सुरन्ह दुदुभी बजाई को वरषि प्रसून अपछरा गाई रामो पानि सरोज सोह जयमाला ॐ अवचट चितए सकल भुला ॐ देवताओं ने हर्षित होकर नगाड़े बजाये और फूल बरसाकर अप्सराये गाने हैं। राम) लगीं । सीता के कमल ऐसे हाथों में जयमाला शोभित है। सब राजा चकित राम हो होकर अचानक उनकी ओर देखने लगे। राम सीय चकित चित रामहि चाहा छ भये मोहबस सव नरनाहा रान) । मुनि समीप देखें दोउ भाई की लगे ललकि लोचन निधि पाई है। सीता का चकित चित्त तो राम को चाहता है। सच राजा लोग मोह के वश हो गये। सीता ने मुनि के पास दोनों भाइयों को देखा, तो उनके नेत्र अपना खजाना पाकर ललककर बहीं जा लगे । - गुर जन लाज समाज बड़ देखि सीय सकुचानि।। कुँ लगी बिलोकन सखीन्ह तन रघुबीरहिं उरानि।२४८ । १. लक्ष्मी । २. तुल्य ।