पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२८०

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- २७७ हैं। नृप भुजबल विधु सिव धनु राहू ॐ गरु कठोर विदित सव काहू के राम रावल : बान महाभट भारे ॐ देखि सरासन गवहिं सिधारे एम राजाओं की भुजाओं का बल चन्द्रमा है, शिवजी का धनुष राहु है; वड़ा एम) भारी है, कठोर है यह सबको मालूम है। रावण और बाणासुर वड़े भारी योद्धा भी इस धनुष को देखकर चुपके-से चलते बने । । सोइ पुरारि कोदण्ड' कठोरा छ राज समाज आजु जोइ तोरा त्रिभुवन जय समेत वैदेही के बिनहिं विचार करइ हठि तेही | शिवजी के उसी कठोर धनुष को आज राजसभा में जो तोड़ेगा, तीनों लोर्को की विजय के साथ ही सीता उसको बिना किसी विचार के, हठपूर्वक ६ वरण करेंगी ।। होम, सुनि एन सकल भूप अभिलाषे % भट मानी अतिसय मन मापे परिकर बाँधि उठे अकुलाई ॐ चले इष्टदेवन्ह सिरु नाई प्रण सुनकर सब राजा ललचा उठे। जो अभिमानी योद्धा थे, वे मन में राम ॐ बहुत ही जोश में आये । सब कमर कसकर, अकुलाकर उठे और अपने इष्टदेव गुम्छ को प्रणाम करके चले ।। ॐ तमकि ताकि तकि सिव धनु धरहीं ॐ उठइ न कोटि भाँति चल करहीं हैं। * जिन्ह के कछ विचार मन माहीं ॐ चाप समीप महीप न जाहीं वे किचकिचाकर और दृष्टि जमाकर शिवजी के धनुष को पकड़ते हैं; पर करोड़ों भाँति से जोर लगाने पर भी वह उठता नहीं है। जिन राजाओं के मन में कुछ विवेक है, वे धनुष के पास ही नहीं जाते । तमकिधरहिं धनु बूढ़प उठइ न चलहिं जाई। ४. सन पाइभ बाहुबल अधिकाधिक रुइ।२५० सूढ़ राजा किचकिचाकर धनुष को पकड़ते हैं, परंतु जब वह नहीं उठता तो । लजाकर चले जाते हैं। मानो वीरों की भुजाओं का बल पाकर वह धनुष और भी भारी हो जाता है। । भूप सहस दस एकहि बारा $ लगे उठावन टरइ न टारा । डगइ न संभु सरासन कैसे ॐ कामी वचन सती मनु जैसे १. धनुष ।