पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२८३

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ॐ २८० % छान . ॐ हे सूर्य-कुलरूपी कमल के सूर्य ! सुनिये। मैं स्वभाव ही से कहता हूँ, कुछ अभिमान करके नहीं; यदि आपकी आज्ञा पाऊँ, तो मैं ब्रह्मांड को गेंद की तरह | ॐ उठा लें। । काँचे घट जिमि डारौं फोरी ॐ सउँ मेरु मूलक' इव तोरी तव प्रताप महिमा भगवाना ॐ का बापुरों पिनाक पुराना राम) . और उसे कच्चे घड़े की तरह फोड़ डालें । मैं सुमेरु पर्वत को मूली की तरह तोड़ सकता हूँ। हे भगवान् ! आपके प्रताप की महिमा से यह बेचारा पुराना रामको धनुष क्या है ? नाथ जानि अस आयसु होऊ ॐ कौतुक करौं विलोकिअ. सोऊ कमल नाल जिमि चाप चढ़ावौं ॐ जोजन सत प्रमान लै धाव . ऐसा जानकर हे नाथ ! आज्ञा हो, तो कुछ खेल करू । उसे भी देखिये। धनुष को कमल की डंडी की तरह चढ़ाकर उसे सौ योजन तक लेकर दौड़े। के एन) - तो छत्रक दण्ड जिमि तव प्रताप बल नाथ । एम है ! जौं २ का प्रश्नु पद सपथ कर न धरों धनु भाथ।२५३ हे नाथ ! आपके प्रताप के बल से धनुष को कुकर-मुत्ते की डंठल की तरह तोड़ दें। यदि ऐसा न करू, तो प्रभु के चरणों की शपथ है, फिर मैं धनुष और तरकसे को कभी हाथ में भी न लें गा ।। लषन सकप बचन जब बोले $ डगमगानि महि दिग्गज डोले सकल लोक सब भूप डेराले ॐ सिय हियँ हरष जनकु सकुचाने के | राम) जब लक्ष्मण क्रोध-सहित वचन बोले, तब पृथ्वी डगमगा उठी और राम) दिशाओं के हाथी काँप उठे। सब लोक के सब राजा लोग डर गये; सीता के कैं। हृदय में आनन्द आ गया और जनक भी लजा गये । [ प्रथम व्याघात अलंकार ] एमा गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं ॐ मुदित भये पुनि पुनि पुलकाहीं ऊँ सयनहिं रघुपति लघनु निवारे के प्रेम समेत निकट बैठारे राम् गुरु विश्वामित्रजी राम और सब मुनि मन में हर्षित हुये और बार-बार पुलकित होने लगे। राम ने इशारे से लक्ष्मण को रोका और प्रेम-सहित उनको । पास बैठा लिया। ॐ १. मूली । राम -उमटरम):-राम -राम -राम)-राम -राम-राम -राम):राम)-रा).