पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२८५

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२८२ छ । ॐ राम अपनी स्वाभाविक गति से चले। राम के चलते समय जनकपुर के सब स्त्रीरोम, पुरुषों के शरीर पुनकायमान हो गये और वे सुखी हुये । । बंदि पितर सब सुकृत सँभारे के जौं कछ पुन्य प्रभाउ हमारे राम तौं सिव धनु चुनाल' की नाईं ॐ तोहिं रामु गनेस : गोसाईं उन्होंने पितरों की वन्दना की और सब पुण्यों का स्मरण किया कि जो हमारे पुण्यों को कुछ भी प्रभाव हो, तो हे गणेश गोसाईं ! राम शिवजी के धनुष को कमल के नाल की तरह तोड़ डालें। - रामहिं प्रेस समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ। नाम सीता भातु सनेह बस बदन कहे बिलखाई।२५५॥ रामे राम को प्रेम-सहित देखकर और सखियों को समीप बुलाकर सीता की । * माता स्नेह के वश होकर, विलाप करती हुई-सी, कहने लगीं--- म) सखि सब कौतुक देखनिहारे ॐ जेउ कहावत हितू हमारे कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं के ए बालक असि हठ अलि नाहीं । रामो : हे सखि ! ये जो हमारे हितू कहलाते हैं, वे भी सब तमाशा देखने वाले रामा ही हैं। कोई भी इनके गुरु ( विश्वामित्रजी ) को समझाकर नहीं कहता कि ये ( राम ) बालक हैं, इनके लिये ऐसा हठ अच्छा नहीं । * रावन वान' छुआ नहिं छापा ॐ हारे सकल . धूप करि दापा सो धनु राजकुअर कर देहीं ॐ वाले साल कि मंदर, लेहीं रावण और बाणासुर ने जिस धनुष को छुआ तक नहीं और सब राजा में * रोष दिखाकर हार गये, वही धनुष राजकुमार के हाथ में दिया जा रहा है। हंस के का बच्चा भी कहीं मंदराचल को उठा सकता है ? [ वक्रोक्ति अलंकार] ॐ भूप सयानप सकल सिरानी ॐ सखि विधि गति कछु जाति न जानी। राम बोली चतुर सखी मृदु बानी ॐ तेजवंत लघु गनिअन रानी. और राजा का तो सारा सथानापन समाप्त हो गया है। हे सखी ! ब्रह्मा की । गति कुछ जानी नहीं जा सकती। तब दूसरी सखी कोमल वाणी से बोली७ हे रानी ! तेजस्वी को छोटा नहीं गिनना चाहिये। * १. कमल की डंडी। २. तरह । ३. बाणासुर ।