पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९०

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| - ' २८७ । राम ने सब लोगों की ओर देखा, तो वे चित्र में लिखे हुये-से दिखाई पड़े। होम, फिर कृपा के घर रास ने सीता की ओर देखा और उन्हें विशेष व्याकुल जाना। | देखी विपुल विकल वैदेही % निमिप विहात' कलप सम तेही हो राम) तृषित वारि विनु जो तलु त्यागा ॐ सुए करई को सुधा तड़ागा। सीता को राम ने बहुत ही विकल देखा; उसका एक-एक पल कल्प के | समान बीत रहा था । यदि प्यासा आदमी पानी के बिना शरीर छोड़ दे, तो उसे | उसके मर जाने पर अमृत का तालाब भी क्या करेगा ? । का वरपा जब कृषि सुखाने के समय चुके पुलि का पछिताने अस जिय जानि जानकी देखी ॐ प्रभु पुलके लखि प्रीति विसेपी खेती के सूख जाने पर वर्षा किस काम की ? समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ १ जी में ऐसा जानकर राम ने जानकी की ओर देखा और के उनकी विशेष प्रीति देखकर बे पुलकित हो गये। होम गुरहि अनाम मनहिं मन कीन्हा ) अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा दमकेउ दामिनि जिमि जव लयेऊ ॐ पुनि धनु नस मंडल सम भयेऊ । रामो . मन ही मन उन्होंने गुरु को प्रणाम किया, और बड़ी फुरती से धनुप को उसे | उठा लिया । जब उन्होंने धनुष को हाथ में लिया, तत्र मानो विजली-सी हो रा) चमकी और फिर धनुष आकाश-मंडल की तरह मंडलाकार हो गया। लेत चढ़ात खेचत गाढे ६ काहुँ न लखा देख सव ठावें। तैहि छन रास मध्य धनु तोरा ॐ भरेउ भुवन धुनि घोर कटोरा लेते हुये, चढ़ाते हुये और ज़ोर से खींचते हुये किसी ने नहीं देखा; सबने उनको केवल खड़ा देखा। उसी क्षण में राम ने धनुष को बीच से तोड़ डाला । घोर कठोर ध्वनि से सब लोक भर गये ।। ॐ छंद-भरे भुवन घोर कठोर व वि वाजि तजि सारग चले। | चिकहिं दिग्गज डोल माहि अहि कोल कूरस कलसले । सुरु असुर लुनि कर न दीन्हें सकल विझत विचारहीं। कोदन्ड खन्डेड स तुलसी जयति वचन उचारहीं ।। १. वीतता हैं । २. जल्दी ।