पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९१

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राम -राम -राम -राम -राम- राम- राम -राम -राम -राम -राम -राम) । २८८ . W E मा । के घोर कठोर शब्द से सब लोक भर गये; सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने । न लगे; दिशाओं के हाथी चिग्धाड़ करने लगे; पृथ्वी डोल उठी; शेष, वाराह रीम हैं और कच्छप चलायमान हो गये; देवता, राक्षस और मुनियों ने कानों पर हाथ होम दे लिये, सब व्याकुल होकर विचारने लगे। तुलसीदासजी कहते हैं---राम ने ॐ धनुष को तोड़ डाला, तब सब रामचन्द्रजी की जय बोलने लगे । 'दृ संकर चापु जहाज्जु सारु रघुबर बाहुबलु । । 8 बूड़ सो सङ्कले समाज्जु चढ़ा जो प्रथसहं मोह बस ॥ ) ॐ शिवजी क़ा धनुष जहाज है और रामचन्द्रजी की भुजाओं का बल समुद्र राम) है, वह सारा समाज, जो मोहवश पहले इस जहाज पर चढ़ा था, डूब गया । राम्रो * प्रभु दोउ चाप खंड महि डारे ॐ देखि लोग सङ भये सुखारे * कौसिकरूप पयोंनिधि पावन ॐ प्रेम बारि अवगाहु सुहावन * : प्रभु ने घनुष के दोनों टुकड़ों को पृथ्वी पर फेंक दिया। यह देखकर सब * लोग सुखी हुये। विश्वामित्ररूपी पवित्र समुद्र जिसमें प्रेमरूपी सुन्दर अथाह जल भरा है। हैं राम रूर राकेस निहारी ॐ बढ़त वीचि पुलकावलि, भारी हैं। एम) बाजे नभ गहगहे निसाना ॐ देववधू नाचहिं करि गाना , राम रूपी पूर्ण चन्द्र को देखकर पुलकावली रूपी सारी लहरें बढ़ने लगीं। यो आकाश में गहगह शब्द करके बड़े ज़ोर से नगाड़े बज उठे और देवताओं की राम स्त्रियाँ गान करके नाचने लगीं। युवा ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा ॐ प्रभुहिं प्रसंसहिं देहिं असीसा बरिसहिं सुमन रंग बहु माला ॐ गावहिं किन्नर गीत रसाला | व्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और मुनीश्वर लोग प्रभु की प्रशंसा कर रहे हैं। * और आशीर्वाद दे रहे हैं। वे रंग-बिरंगे फूल और मालायें बरसा रहे हैं। किन्नर के लोग रसीले गीत गा रहे हैं। रामो रही भुवन भरि जय जय बानी ॐ धनुष भङ्ग धुनि जात न जानी रामा मुदित कहहिं जहँ तहँ नरनारी ॐ भंजेउ राम संभु धनु भारी. १. लहर। २. तोड़ा ।