पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

- . . : -

  • * २६९ | जय-जय की ध्वनि’ सारे ब्रह्मांड में ऐसी भर गई जिसमें धनुष के टूटने की ध्वनि जान ही नहीं पड़ती। जहाँ-तहाँ पुरुष-स्त्री प्रसन्न होकर कह रहे हैं कि

राम ने शिवजी के भारी धनुष को तोड़ डाला। सुमो : बन्दी मागध सूतगन बिरूद वदाहिं सतिधीर। एम है ! निछावरि लोग सव हयगय धन भनि चीर२६२ गम्भीर मति वाले बन्दीजन, मागध और सूत लोग सुयश का बखान कर हो रहे हैं और सब लोग घोड़े, हाथी, घन, मणि और बल न्योछावर कर रहे हैं। । झाँझ मृदंग संख सहनाई ® भेरि ढोल दुदुभी नुहाई बाजहिं बहु वाजने सुहाये छ जहँ तहँ जुवतिन्ह मंगल गाये। झाँझ, मृदंग, शंख, शहनाई, भेरी, ढोल और सुहावने नगाड़े आदि बहुत प्रकार के सुन्दर बाजे बज रहे हैं। जहाँ-तहाँ युवतियाँ मंगल के गीत गा रही हैं। । सखिन्ह सहित हरपी अति रानी ॐ सूखत धान परा जतु पानी के जनक लहेउ सुखु सोच विहाई के पैरत थके थाह जनु पाई । सखियों-सहित रानी अत्यंत हर्षित हुई। मानो सूखते हुये धान पर पानी ॐ पड़ गया हो । जनक ने सुख पाया; उनकी चिन्ता दूर हुई। मानो तैरते-तैरते थके राम) पुरुष ने थाह पा ली । ॐ स्त्रीहत भए भूप धनु टूटे है जैसे दिवस दीप छवि छुटे । राम : सीय सुखहि बरनि केहि भाँती ॐ जनु चातही पाई जलु स्वाती धनुष टूटने पर राजा लोग ऐसे श्रीहीन हो गये, जैसे दिन में दोपक की एम् शोभा जाती रहती है। सीता का सुरव किस प्रकार वर्णन किया जाय, जैसे चातकी । स्वाती का जल पी गई हो। रासहिं लषनु विलोकत कैसे $ ससिहि चकोर किसोरकु जैसे सतानंद तब आयसु दीन्हा ॐ सीता गमनु राम पहिं कीन्हा | राम को लक्ष्मण किस प्रकार देख रहे हैं, जैसे चन्द्रमा को चकोर का बच्चा देख रहा हो। तब शतानन्दजी ने आज्ञा दी और सीता राम के पास गईं। छै संग सखी सुन्दर सकल गावहिं संगलवार।

  • गवली बात माल गति सुखसा अंग अपार २६३ ।