पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९४

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  • २६१ नगर और आकाश में बाजे बजने लगे। दुष्ट लोग उदास हो गये और उन सब सज्जन प्रसन्न हो गये । देवता, किन्नर, नर, नाग और मुनीश्वर जय-जयकार व ॐ करके आशीर्वाद दे रहे हैं। होम नाचहिं गावहिं विबुध बबूटी $ बार चार कुसुमाञ्जलि छूटी ने

जहँ तहँ विप्र वेद धुनि झरहीं ॐ वंदी विरिदावलि उबरहीं है राम) देवताओं की स्त्रियाँ नाचती गाती हैं । बारम्बार अँजुली में भर-भरकर फूल | छोड़े जा रहे हैं। जहाँ-तहाँ ब्राह्मण वेद-ध्वनि कर रहे हैं और भाट लोग विरदावली ( कुन-कीर्ति ) बखान रहे हैं। महि पाताल नाक जसु व्यापा ॐ राम बरी सिय भंजेउ चापा एम् करहिं आरती पुर नर नारी ॐ देहिं निछावरि वित्त विसारी । | पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग तीनों लोकों में यश फैल गया कि राम ने धनुष । तोड़ दिया और सीता को वरण कर लिया। नगर के पुरुष-स्त्री आरती कर रहे में हैं और अपनी पूँजी (हैसियत) को भुलाकर अर्थात् सामर्थ्य से अधिक न्योछावर सोहति सीय राम के जोरी $ छवि सिंगारु नहुँ इक ठोरी सखीं कहहिं प्रभु पद गहुँ सीता ॐ कति न चरन परस अति भीती सीता राम की जोड़ी ऐसी सोहती है, जैसे छवि और शृङ्गार-रस एकत्र हो गये हों। सखियाँ कह रही हैं-सीता ! स्वामी के पैर छु । सीता बहुत डरी हुई हैं और चरण नहीं छूतीं । हैं - गौतम तियराति सुरति करि नहिं परसति पग पनि। एम् = पल बिहँसे रबंससनि प्रीति अलौकिक जानि।२६५ गौतम की स्त्री अहल्या की गति का स्मरण करके सीता राम का चरण हाथ से नहीं छू रही हैं। तब रघुकुल के शिरोमणि रामचन्द्रजी सीता की अलौकिक प्रीति जानकर मन में हँसे ।। । तब सिय देखि भूप अभिलापे ॐ कूर् कपूत मूढ़ मन मापे से उठि उठि पहिरि सनाह अभागे है जहँ तहँ गाल बजावन लागे । तब सीता को देखकर कुछ राजा लोग ललचा उठे। वे दुष्ट, कपूत और है। म) सूढ़ राजा बहुत उत्तेजित हुये । वे अभागे उठ-उठकर, कवच पहनकर, जहाँ-जहाँ के ॐ गाल बजाने लगे।