पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९५

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। २६२ : अमुचा नारा ८ | लेहु छड़ाय सीय कह कोऊ ॐ धरि वाँधहु नृप वालक दोऊ हैं। तोरें धनुष चाड़ नहिं सरई ॐ जीवत हहिं कुर को वरई कोई कहता है अरे, कोई सीता को छीन लो और दोनों राजपुत्रों को पकड़एम) . कर वाँध लो । केवल धनुष तोड़ने ही से काम न सरेगा। हमारे जीते-जी राज- सुम । कुमारी को कौन चरण कर सकता है ? । राम जौं विदेहु कछु करै सहाई % जीतहु समर सहित दोउ भाई । साधु थूप बोले सुनि वानी क्वी राज समाजहिं लाज लजानी यदि जनक कुछ सहायता करें, तो उसे भी दोनों भाइयों-सहित युद्ध में जीत लो । यह वचन सुनकर सज्जन राजा वोले- इस राजसमाज को देखकर तो को | लज्जा को भी लज्जा आती है। वलु प्रतापु वीरता बड़ाई ॐ नाक पिनाकहि संग सिधाई । हैं सोंड सूरता कि अब हुँ पाई % असि बुधि तौ विधि मुंह मसि लाई हुँदै अरे, तुम्हारा वल, प्रताप, वीरता, बड़ाई और नाक ( प्रतिष्ठा ) तो धनुष उम है के साथ ही चली गई। वहीं वीरता है कि अब कहीं से और मिली है ? ऐसी है ही बुद्धि है, तभी तो ब्रह्मा ने मुँह में कालिख पोत दिया। [ लोकोक्ति अलंकार ]. देख महिं नयन भरि तजि इरिषा सढु कोहु ।। te लपन शेषु पावकु प्रवल जानि सलभ जनि होहु॥२६६ ईष्य, अहंकार और क्रोध को छोड़कर राम को आँख भरकर देखो। जानॐ वूझकर लक्ष्मण की क्रोधरूपी प्रवल अग्नि में पतंगे मत बनो। .. तमो वैनतेय वलि जिमि वह कागू जिमि सस चहै नाग” अरि भागू राम । जिमि चह कुसल अकारन कोही ॐ सुख संपदा चहै सिव द्रोही तुम जैसे गरुड़ का भाग कौआ चाहे, हाथी का अंश खरहा चाहे, बिना कारण । ही क्रोध करने वाला कुशल चाहे, शिव से द्रोह करने वाला सुख और वैभव । चाहे, लोभी लोलुप कीरति चहई ॐ अकलंकता कि कामी लहई * हरिपद विमुख परम गति चाहा ॐ तस तुम्हार लालचु नरनाहा . लोभी और चंचल आदमी कीर्ति चाहे; कामी कलंक से बचना चाहे और रण) । १. हाथी ।