पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९६

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ॐ भगवान् के चरणों से विमुख रहने वाला परम गति चाहे, हे राजाओ ! तुम्हारा । | मि) लोभ उसी तरह व्यर्थ है। हुँदै कोलाहलु सुनि सीय सकानी ॐ सखीं लेवाइ गई जहँ रानी । राम सुभायें चले गुरु पाहीं सिय सनेहु वरनत मन माहीं हल्ला सुनकर सीता डर गईं; तब सखियाँ उन्हें वहाँ ले गई, जहाँ रानी थीं। राम मन में सीता के प्रेम का बखान करते हुये स्वाभाविक चाल से गुरु के। पास चले ।। । रानिन्ह सहित सोचबस सीया ॐ अव धे। विधिहि काह करना । भूप बचन सुनि इत उत तर्कहीं ॐ लपनु राम डर वोलि न कहीं म रानियों-सहित सीता चिंता के वश में हैं कि न जाने ब्रह्मा अर्य क्या करने के वाले हैं। राजाओं के वचन सुनकर लक्ष्मण इधर-उधर ताकते हैं किंतु राम के हैं डर से कुछ बोल नहीं सकते। । अरुल नयन भृकुटी कुटिल चितवत छुपन्ह सोए। 3 मनहूँ मत्तगज गर्न निरखि सिंच किलोहिं चौपा२६७ ने लक्ष्मण के नेत्र लाल और भौंहें टेढ़ी हो गई, वे राजाओं को क्रोध से देखने लगे । मानो मतवाले हाथियों का कुण्ड देखकर सिंह के बच्चे को जोश आया हो । खरभरु देखि विकल पुरनारीं ॐ सत्र मिलि देहि महीपन्ह गारी तेहि अवसर सुनि सिवधनु भङ्गा ॐ आये भृगुकुल कमल पतंगा खलबली देखकर नगर की स्त्रियाँ व्याकुल हो गई। सब मिलकर राजाओं राम को गालियाँ देने लगीं। उसी मौके पर शिवजी के धनुप का टूटना सुनकर भृगुकुल रूपी कमल के सूर्य परशुराम आये। एम् देखि महीप सकल सकुचाने ॐ वाज झपट जनु ला लुकाने गौरं सरीर भूति भलि भ्राजा $ भाल विसाल त्रिपुङ बिराजा है। उन्हें देखकर सव राजा सकुचा गये, जैसे चाज के झपटने पर बटेर लुक म) गये हों । परशुराम के गोरे शरीर पर विभूति खूब सज रही है। विशात्न ललाः । ॐ पर त्रिपुण्ड (तिलक) शोभित है।