पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२९८

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बाल-0ङ = २९५ परशुराम ने सीता को आशीर्वाद दिया। सखियाँ प्रसन्न हुई । ३ सयानी सखियाँ सीता को अपनी मण्डली में ले गईं। फिर विश्वामित्र आकर मिले और के दोनों भाइयों को परशुराम के चरण-कमलों पर गिराया । म) रामु लपलु दसरथ के ढोटा ॐ दीन्हि असीस देखि भल जोटा' ) रामहिं चितइ रहे भरि लोचन $ रूप अपार मार मद मोचन एम) विश्वामित्र ने कहा-ये रोम और लक्ष्मण राजा दशरथ के पुत्र हैं। उनकी जो ॐ सुन्दर जोड़ी देखकर परशुराम ने आशीर्वाद दिया। राम को वे नेत्र भरकर देखते रहे। राम को रूप अपार और कामदेव के घमंड को चूर करने वाला था। १ बहुरि बिलोकि विदेह सन कहहु हे अति भीर।। ॐ ऐं छत जालिंअजान जिसि व्यापेउ झोपु सरीर।२६९ फिर जनक की ओर देखकर परशुराम ने कहा---कहों, इतनी बड़ी भीड़ । कैसी १ वे जानते हुये भी अनजान की तरह पूछते हैं। उनके सारे शरीर में क्रोध राम छा गया है। समाचार कहि जनक सुनाये ॐ जेहि कारन महीए सव बाये सुनत वचन फिरि अनत’ निहारे ॐ देखे चाप खंड महि डारे जिस कारण सब राजा आये थे, जनक ने सव समाचार उन्हें कह सुनाये । जनक के वचन सुनकर परशुराम ने फिरकर दूसरी ओर देखा तो, धनुप के टुकड़े पृथ्वी पर पड़े हुये दिखाई दिये। अति रिस बोले वचन कठोरा ६ कहु जड़ जनक धनुप केइ तोरा रणमा बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू ॐ उलटउँ सहि जहँ लाहिं तव राजू है . अत्यंत क्रोध में भरकर वे कठोर वचन बोले--अरे, मूढ़ जनक ! बता, धनुष एस) किसने तोड़ा ? उसे शीघ्र दिखा, नहीं तो ऐ मूढ़ ! आज मैं जहाँ तक तेरा राज्य पुन् ॐ है, वहाँ तक की पृथ्वी उलट देंगी। एम अति डर उतर देत नृषु नाहीं ॐ कुटिल भूप हरपे मन माहीं । सुर मुनि नाग नगर नर नारी ॐ सोचहं सकल त्रास उर भारी | राजा जनक अत्यंत डर के मारे उत्तर नहीं देते। यह देखकर दुष्ट राजा मन में बड़े प्रसन्न हुये। देवता, सुनि, नाग और नगर के पुरुष-स्त्री सभी चिन्ता । १. जोड़ा । २. अन्यत्र, दूसरी जगह ।