पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३०

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दुख सुख पाप पुण्य दिन राती । साधु असाधु सुजाति कुजाती ॥

दानव देव ऊँच और नीचू । अमिअ सजीवनु माहुरु मीचू ॥

दुःख और सुख, पाप और पुण्य, दिन और रात, साधु और असाधु, सुजाति और कुजाति, राक्षस और देवता, ऊँच और नीच, अमृत और संजीवन, विष और मृत्यु,

माया बह्म जीव जगदीसा । लच्छि' अलच्छि रंक अवनीसा ॥
कासी मग' सुरसरि क्रमनासा । मरु मारव महिदेव गवासा' ॥
सरग नरक अनुराग बिरागा । निगम अगम गुन दोष विभागा ॥

माया और ब्रह्म, जीवात्मा और परमात्मा, लक्ष्मी और दरिद्रता, रङ्क और राजा, काशी और मगह (मगध देश) गंगा और कर्मनाशा नदी, मारवाड़ और मालवा, ब्राह्मण और कसाई, स्वर्ग और नरक, प्रीति और वैराग्य, वेद- शास्त्र ने इन सबके गुण-दोषों का विभाग कर दिया है ।

जड चेतन गुन दोषमय विस्व कीन्ह करतार ।
सन्त हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारिविकार ॥६।। 

ब्रह्मा ने इस जड़-चेतन जगत् को गुण और दोष से युक्त वनायाZ । सन्तरूपी हंस गुणरूपी दूध को ग्रहण करते हैं और दुर्गुण रुपी जल को छोड़ देते हैं ।

अस बिबेक जब देई विधाता । तब तजि दोष गुनहिं मनु राता ॥
काल सुभाउ करम बरिआई । भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाई ॥

जब ब्रह्मा इस प्रकार का ज्ञान देते हैं, तव मन दोषों को छोड़कर गुणों में लग जाता है । समय, स्वभाव और कर्मों की प्रबलता से साधुजन भी कभी-कभी' माया के फेर में पढ़कर भलाई से चूक जाते हैं ।

सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं । दलि दुःख दोष विमल जसु देहीं ॥
खलउ करहिं भल पाई सुसंगू । मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू ॥

ईश्वर-भक्त जैसे उस भूल को सुधार लेते हैं और दुःख-दोषों को मिटाकर निर्मल यश देते हैं, वैसे ही दुष्ट भी सुसंग पाकर भलाई करने लगते हैं; परन्तु

१ लक्ष्मी । २ मगध देश । ३. मालवा । ४. कसाई ।